संशयग्रस्त समय

संशयग्रस्त समय

नाव चल रही थी। नाव पर मैं था, भेड़ और शेर भी सवार। पतवार घड़ियाल के हाथ में थी। एक तरफ घास भी रखी हुई। सब खामोश एकदम। शेर बार-बार घास की तरफ देख रहा था और भेड़ की तरफ भी देखता जाता। उसी ने चुप्पी तोड़ी, कुंठा भरी आवाज ‘शेर मरते मर जाएगा लेकिन…!’ घड़ियाल ने बीच में टोक दिया, ‘वक्त बेवक्त सब करना पड़ता है आखिर मैं भी तो बंदर के सामने रोया कि नहीं! हम में से किसी को किसी पर रत्ती भर भरोसा नहीं था।’ शेर समझता मैं और घड़ियाल मिले हुए हैं। घड़ियाल को लगा कि शेर ने इस आदमी से साँठ-गाँठ कर रखी है। सिर्फ बेचारी भेड़ थी, जो बड़ी उम्मीद से टकटकी बाँधे मुझे देखे जा रही थी। मुझे शंका हो रही थी कि घड़ियाल और शेर मिल सकते हैं। देखो परिस्थिति क्या मोड़ लेती है। पानी पर पतवारें और गर्दन पर तलवारें एक सरीखी आभास देती हुई। घड़ियाल ने शेर की तरफ देख कहा–‘मैंने सुना है कि इस भेड़ से तुम्हारी बड़ी करीबियाँ हैं। गोश्त का शौकीन मैं भी हूँ।’ मैं बोला, ‘ये शौकीन–वो कीन सभ्यता में होते होंगे, जंगल में सिर्फ भूख होती है और जब होती है तब जंगल भर होती है।’ ‘तुम तो इस जंगल में निर्द्वंद्व हो, राजा हो’ भेड़ मिमिया उठी। ‘आजकल ऐसा नहीं रह गया है। पानी पीने सभी को नदी पर आना ही पड़ता है’ घड़ियाल मुस्कराते हुए बोला। ‘खाने की चीजों पर सब टूट पड़ना चाहते हैं’ मैं बोला। ‘घास और इस आदमी को एक दफा छोड़ दे तो’–शेर ने कहा। आदमी को भला क्यों छोड़ दें।

घड़ियाल हँस पड़ा। मैं भीतर तक काँप उठा लेकिन खुद को सँभाला और रोबदार आवाज में बोल उठा ‘सभ्यता में आखेट एक पुराना खेल चला आ रहा है।’ शेर मुझे घूरने लगा। घड़ियाल ने बीच धार में पतवारें उठा ली और बोला–‘मुझे तो भूख लगी है।’ हम सब घबरा गए। शेर ने कहा ‘अरे किनारा सामने ही है, वहीं फैसला कर लेंगे।’ ‘किनारे पर नाव तो लगा लूँ लेकिन इसमें तुम दो का ही फायदा होगा। इसे तो मैं यूँ ही दबोच खाऊँगा।’–भेड़ की तरफ देखते हुए घड़ियाल फिर हँसा। मैंने कहा–देखो स्वाद के मामले में अपन तीनों के विचार मिलते हैं। तभी एक छपाक की आवाज आई–भेड़ एक कागज पर कुछ लिख छोड़ गई थी। ‘मुझे कम से कम तुम पर तो भरोसा था।’ यह जान घड़ियाल और शेर दोनों मेरी तरफ देख मुस्करा रहे थे।


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Artist : T.C.Steele
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