एक दिन आसमान नीला था

एक दिन आसमान नीला था

(ओड़िया कहानी)

अरसे बाद सिराज को देखकर टुटुल मुस्कुराया। सिराज अपने पिता के पीछे खड़ा था। वह काफी लंबा हो गया है, उसकी पतली मूँछें भी उगने लगी थी। सिराज के पिता बटरफ्लाई मॉल के दरबान के आगे हाथ जोड़कर कह रहे थे। ‘मुझे साहब से एक बार मिलवा दें, मैं उनसे अपनी बातें कहना चाहता हूँ। वे मेरी बात सुन लें तो सही, नहीं तो मैं अपनी किस्मत लेकर और कहीं चला जाऊँगा।’

गहरी बैंगनी रंग की शर्ट, काली पैंट, काले जूते और काली टोपी पहने दरबान, सिराज के पिता जी की बातें सुनने को तैयार नहीं था। उसने कहा, ‘नहीं, जब चाहें जी.एम. साहेब से भेंट नहीं हो सकती है। आपको पहले से अनुमति लेनी होगी। अब जाओ, मुझे अपना काम करने दो।…’

सिराज अपने पिता जी के पीछे खड़े होकर इधर-उधर ताकने लगा। अब वह लंबा तो दिख रहा था पर पहले से काफी पतला-सा। उसने एक लाल रंग की शर्ट और काली रंग की पतलून पहन रखी थी। टुटुल उसके पास पहुँचा और धीरे से धक्का देकर पूछा, ‘तुम यहाँ क्या कर रहे हो?’ सिराज ने उसकी ओर देखा और आश्चर्य हो मुस्कुरा दिया। पर उस हँसी में जान न थी। वह नहीं चाहता था कि टुटुल उसे ऐसी स्थिति में देख ले। उसने इतना ही कहा, ‘मैं अपने पिता जी के साथ आया था। अभी निकल चलेंगे। तुम कैसे हो?’

‘ठीक हूँ। मैं अभी हैदराबाद में पढ़ रहा हूँ’, टुटुल ने कहा।

सिराज टुटुल के साथ पढ़ रहा था। लेकिन यह चार साल पहले की बात है। सिराज ने सातवीं कक्षा से स्कूल छोड़ दी। पहले इतवार और छुट्टियों के दिन वह अपने पिता के जूते बनाने की दुकान पर आ बैठता था। लेकिन वह जब से स्कूल जाना छोड़ दिया तो नियमित रूप से यहीं काम करने लगा। स्कूल से आने-जाने के रास्ते में भेंट होने पर भी टुटुल ने उससे कभी नहीं पूछा कि वह क्यों स्कूल नहीं आ रहा है। शायद उसे पता रहा होगा कि सिराज क्यों नहीं स्कूल आ पा रहा है। उसके बाद टुटुल पढ़ने के लिए हैदराबाद चला गया। अब वह मैट्रिक की परीक्षा देकर घर लौटा है।

चार साल पहले यहाँ कोई बटरफ्लाई मॉल नहीं था। वहाँ एक खाली मैदान था जहाँ दैनिक बाजार लगता था। हर रोज दोपहर के बाद मिट्टी के चबूतरे पर सब्जियाँ, चावल और अंडों से लेकर मछली की दुकानें लगती थी। दुकानदारों ने चबूतरे के चारों ओर बाँस गाड़कर फटे-पुराने तंबू टाँग देते थे। उसके नीचे उनलोग की दुकानें लगती थी। टुटुल के घर और स्कूल के बीच यह बाजार लगने के कारण उसके पिता उसे उस सड़क से घर लाते थे। उस समय टुटुल एंटनी आइसक्रीम-अंकल से आइसक्रीम लेता था, वैकुंठ दादा जी से गोल-गप्पे लेता था। लेकिन उसका सबसे पंसदीदा था सिराज। सिराज उसको देखते ही चॉकलेट या तो चनाचुर ले आता था।

टुटुल का सिराज से प्यार करने की एक नहीं दो वजहें हैं। एक दिन उसके तीन जोड़े जूते फट गए थे। लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं थी, बड़ी बात यह थी कि जब एक दिन स्कूल जाने के वक्त उसका एक भी जूता सही नहीं था, उस दिन स्कूल में खेल का प्रोग्राम था। टुटुल को जब एक भी सही जूते नहीं मिल रहे थे तब उसके पिता जी बिगड़ने लगे। नाराज होकर उसने कहा था, ‘टुटुल आज नंगे पाँव स्कूल जाएगा।’ फिर उन्होंने टुटुल के तीन जोड़े जूते लेकर सिराज के पिता जी की दुकान में दिए थे। सिराज ने उस टूटे-फूटे जूतों को पंद्रह मिनट में मरम्मत कर दी और टुटुल एक जोड़े जूते पहनकर स्कूल गया था। फिर पिता जी का गुस्सा शांत हो गया था। टुटुल उस दिन सिराज के ऊपर बहुत खुश हुआ था। सिराज के हाथों की चमत्कारी से वह चकित था। एक और कारण खुद सिराज ने बताया था। उसने कहा था उसका भी एक नाम था टुटुल। उसकी माँ उसे इसी नाम से बुलाती थीं। लेकिन उसकी माँ जब दुनिया छोड़कर चल बसी तब उसको उस नाम से कोई भी पुकारता नहीं। सिराज जब दूसरी कक्षा में पढ़ता था तब उसकी भी माँ चल बसी। दुकान में रोटी और सब्जी पहुँचाकर माँ घर लौटते समय सड़क पार कर रही थीं उसी वक्त एक ट्रक उसके ऊपर चढ़ गया। तब सिराज की उम्र छह साल की थी।

टुटुल के आसपास मॉल में आने वाले लोगों की भीड़ और गाड़ियाँ भी खचाखच भरी हुई थी। लोगों का शोरगुल। बटरफ्लाई मॉल से हाथों में, ट्रॉलियों से खरीदारी कर सामान लिए लोग बाहर आ रहे हैं। इस जैसा कोई मॉल ही नहीं है, एक बहुत बड़ा बजार है। पिता जी ने कहा, बटरफ्लाई मॉल में वैसी कोई चीज नहीं हैं जो मिलती नहीं। यहाँ सुई से लेकर मोटरकार, सोना और सब्जियों से लेकर सब कुछ मिलता है। इस मॉल के ग्राहक तितलियों की तरह इस बिल्डिंग से उस बिल्डिंग तक, इस कांउटर से उस कांउटर तक मँडरा रहे हैं। अगर उन लोग को शॉपिंग करने की इच्छा है तो शॉपिंग करते हैं नहीं तो थक जाने पर कॉफी काउंटर के पास बैठ कर कॉफी पीते हैं। इस चार मंजिला मॉल में देश-विदेश की तमाम नामी कंपनियों ने अपने शोरूम खोल रखा है। ऑस्ट्रेलियाई सेब से लेकर बीजिंग का अर्चित, फूल और थाईलैंड की इमली से लेकर अमेरिकी ‘लैप टॉप’ तक सब कुछ यहाँ मिलता है।

बटरफ्लाई मॉल के चारों ओर विस्तृत कंक्रीट का फर्श है। जहाँ चार साल पहले एक तालाब था, शालूक फूल खिलते थे, अब यहाँ प्लास्टिक का ताड़ के पेड़ों की कतारें हैं। पेड़ों में लिपटी हुई है प्लास्टिक की अपराजिता की लताएँ। फूलों की जगह छोटे-छोटे बल्ब रात में जलते हैं। मॉल की छत पर तितली के आकार का एक विशाल गुब्बारा दिन-रात उड़ता रहता है। उस गुब्बारे में अँग्रेजी के बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है बटरफ्लाईज्। गुब्बारे को काफी दूर से देखा जा सकता है। टुटुल सिराज से और भी कुछ बात करना चाहता था। लेकिन जिस तरह सिराज ने उससे मुँह फिरा लिया, तब और बातें बढ़ाने के लिए मन में उत्साह रहा नहीं। उसे लगा कि सिराज के पिता जी कुछ मुसीबत में फँसे हुए हैं। उसने चारों ओर देखा। रास्ते तक पार्किंग का क्षेत्र विस्तार हुआ है। अब ऐसा नहीं लगता है कि यहाँ चार साल पहले दिन में भी खड़े होने से डर लगता था।

टुटुल की कॉलोनी और स्कूल के बीचों-बीच यह जगह काफी समय से बेकार और गंदगी से भरा पड़ा था। कुछ हिस्से पर बाजार लगता था और बाकी हिस्सों में यहाँ फुटबॉल का खेल होता था। लेकिन उसे अधिक भाने लगता था पूजा के समय। यहाँ सात दिनों तक मेला लगता था। दो झूले लगते थे। बाकी दिनों में यहाँ गाय और भेड़ चरते थे। मैदान के बीचों-बीच दो बडे-बड़े बरगद के पेड़ थे। यहाँ टुटुल और उसके दोस्त खेला करते। घासों से भरे इसमें दिन में टिड्डे और तितलियों के पीछे वे भागते थे। जब वे खेलते-खेलते थक जाते, तब बरगद के नीचे सुस्ताने लगते। बरसात के दिनों में घासों से भरे मैदान हरे-भरे हो जाते। उसके ऊपर लाल-लाल मखमली वीरबहूटी कीड़े रेंगते थे। सर्दी के दिनों घासों पर ओस की बूँदें हीरे जैसी चमकने लगते थे।

एंटनी अंकल रोज स्कूल के गेट पर आइसक्रीम और वैकुंठ दादा जी गोल गप्पे लेकर बेचने आते थे। सिराज को भी एक फायदा था, स्कूल के पास ही उनकी दुकान थी। वह मन चाहे दुकान पर जा सकता था और अपने पिता जी की मदद कर सकता था। टुटुल से तीन या चार साल बड़ा होने के बावजूद वह जूतों की मरम्मती करना सीख लिया था। वह किस ग्राहक से कैसे बातें करनी है यह भी जानता था। खुद रुपयों का लेन-देन भी करता। सिराज दूसरी और तीसरी कक्षा में वह एक-एक साल करके रह गया था। इसके पीछे वजह यह थी कि जब वह दूसरी कक्षा में पढ़ता था तब उसकी माँ गुजर गयी और जब वह तीसरी कक्षा में था तो इम्तीहान नहीं दे पाया।

सिराज कहता था है कि वे बांग्लादेशी हैं। टुटुल इसका मतलब समझ नहीं पाता था। सिराज का कहना था कि, वे सालों पहले भारत में ही रहते थे। जब देश का विभाजन हुआ तब वे लोग बांग्लादेश में बस गए। फिर युद्ध के दौरान वे भारत भाग आए। वे पहले कलकत्ता फिर केंद्रपाड़ा के समुद्र तट पर बस गये थे। वहाँ से फिर सरकार द्वारा हटा देने पर केंद्रपाड़ा छोड़कर खोरधा में आ गए। टुटुल सिराज की ओर देखता रहा। इतने सारे नये स्थानों पर रहते हुए उसे कितना मज़ा आया होगा, वह सोचने लगा। लेकिन सिराज का चेहरा देखने से टुटुल की बातें उसकी समझ में नहीं आता था। सिराज के बारे में वह और भी बहुत-सी बातें जानना चाहता, पर इसके लिए मौका ही नहीं मिलता था। उसके माँ-बाप की नज़र हरदम उस पर थी। उसे सिराज की तरह आजादी नहीं थी।

उसकी माँ पीछे से बुला रही थी, ‘टुटुल बेटा, आ जाओ।’

पीछे मुड़कर टुटुल ने देखा, माँ के चेहरे पर झुँझलाहट के भाव थे। शायद वह सिराज के पास जाकर और भी कुछ पूछ सकता, लेकिन माँ को देखकर, कुछ बातें ही नहीं हो सकी। माँ कह रही थी, ‘उन लोगों की यहाँ मनमानी चल रही है। हर चीजों की स्तर घट रही है और कीमतें बढ़ रही हैं।’

वे लोग कार में आकर बैठ गए।

पिता जी ने कहा, ‘पहले जब यहाँ देशी बाज़ार लगता था तो सब्जी वाला या मछुआरे एक-आध रुपये लाभ के लिए माँग लेते थे। लेकिन इस मॉल में तो दिन दहाड़े रुपयों की लूट चल रही है।’

‘ऑस्ट्रेलियाई सेब, मलेशियाई तरबूज, चीनी कद्दू ये सब कौन पहचानता है? वे सारे मार्केटिंग के कौशल हैं’–माँ ने कहा।

टुटुल को याद आया कि जिस दिन उसकी माँ ने पहली बार बटरफ्लाई मॉल खोलने की बात सुनी, वह बहुत खुश हुई थी। उसने कहा था, ‘इतने दिनों के बाद शॉपिंग का मज़ा आएगा। मॉल के वातानुकूलित शॉपिंग के आगे यह धूल भरा बाजार कितना नाचीज़ है!

टुटुल अपनी कार का दरवाजा बंद करने जा रहा था। पीछे मुड़कर देखा दरबान ने सिराज के पिता जी को जोर से धक्का दिया और सिराज अपने पिता जी को नीचे से उठा रहा है। इससे लज्जित न होकर दरबान फिर भी चिल्ला रहा है। टुटुल चिल्लाया, ‘पिता जी!’

टुटुल के पिता जी चौंक पड़े और कहा, ‘क्या हुआ?’

वह आदमी सिराज के पिता जी को धक्का दे रहा है।

‘सिराज कौन है?’–माँ ने पूछा।

‘मेरा दोस्त है माँ। जूते का दुकानदार जो मेरे साथ पढ़ता था।’

टुटुल के पिता जी बेटे की बातें टालना चाहते थे। लेकिन टुटुल का चेहरा असंभव रूप से दृढ़ था, हो सकता है कि देर हुई तो टुटुल कूद पड़ेगा। इसलिए उसने कार को सड़क की एक ओर किनारे खड़ी कर दी। उन्होंने दरबान के पास जाकर पूछा, ‘तुम उसे क्यों धक्का दे रहे हो और क्यों इतना चिल्ला रहे हो?’

दरबान ने कहा, ‘इस आदमी को बार-बार यहाँ आते हुए दो महीने हो गए। साहब मना किए हैं। वे इससे और मिलना नहीं चाहते हैं। लेकिन वह सुन नहीं रहा है।’

‘साहब, कौन साहब हैं? उनका नाम क्या है?’

‘जनरल मैनेजर। राजन सर।’

‘क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ? ये रहा मेरा कार्ड।’

दरबान कार्ड लेकर अंदर गया। टुटुल के पिता जी ने सिराज के पिता जी से पूछा, ‘आपकी समस्या क्या है?’

सिराज के पिता जी ने कहा, ‘मैंने अपना जूता मरम्मत की दुकान यहाँ दस साल पहले से खोला है। अब ये मॉल वाले कह रहे हैं कि यहाँ जूता कंपनी की होडिंग लगायेंगे। तो अब मैं कहाँ जाऊँ?’

टुटुल के पिता जी ने कहा, ‘अब यह उनकी जगह है। आप अब कैसे यहाँ दुकान रख सकते हैं?’

सिराज के पिता जी ने कहा, ‘नहीं, यह तो राजमार्ग की जगह है। ये अमीर लोग अपनी जगह पर मॉल बना लेने के बाद, अब वाहनों को सरकारी जगहों पर रखने की व्यवस्था कर रहे हैं। हमें भले ही छह फुट की जगह चाहिए, लेकिन वह भी हमें नसीब नहीं है। चटगाँव से कोलकाता फिर वहाँ से केंद्रपाड़ा और केंद्रपाड़ा से खोरधा…हमें और कितनी बार प्रताड़ित होने पड़ेंगे?’

टुटुल ने देखा कि सिराज अपने आँसू छुपा रहा है। ऐसी परिस्थिति में सिराज उससे मिलना नहीं चाहता था। सिराज उन लोग के क्लास का हीरो था। उसके लिए पढ़ाई को छोड़ कोई भी काम असंभव नहीं था। वह कहता था कि, जब वह बड़ा होगा तो एक खेल-सामग्री की दुकान खोलेगा। यह छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी के लिए खेल-सामग्री और व्यायाम का उपकरण भी साथ-साथ बेचेगा। बड़े-बड़े जिम में भी उपकरण उपलब्ध कराएगा और वह एक बड़ा और धनी व्यापारी बनेगा।

बटरफ्लाई मॉल के जनरल मैनेजर ने कहा, ‘जी, हम यहाँ से किसी के साथ जबरदस्ती नहीं कर रहे हैं। सभी को मुआवजा दिया जा रहा है। हम व्यापारी हैं, आतंकवादी नहीं हैं। इस सज्जन से कहा गया है–तुम्हारे पास दो विकल्प हैं। एक तो यह है कि आप अपने बेटे को यहाँ सेल्समैन की नौकरी पर लगा दें और उसके बदले यह जगह छोड़ दें, नहीं तो इस स्थान को पट्टे पर ले लें लेकिन एक साल का रुपया एडवांस के तौर पर देना होगा। पर एक शर्त होगी, दुकान को हमारे जैसे मॉडल में बनाना पड़ेगा।’

‘उसे एक साल के लिए कितने का भुगतान करना होगा?’

‘बारह लाख रुपये। पहले साल के लिए दस लाख।’

टुटुल के पिता जी चकित हो गए। यह फुटपाथ का जूता मरम्मत का दुकानदार हर साल दस लाख रुपये कहाँ से जुटाएगा!’

जनरल मैनेजर ने टुटुल के पिता जी को बैठने को कहा। उनके लिए कॉफ़ी और टुटुल और उसकी माँ के लिए फलों का जूस मँगवाये। वे बहुत ही शांत और स्थिर भाव से बातें कर रहे थे। उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान लगी हुई है।

उन्होंने कहा, ‘क्या आप जानते हैं कि एयरपोर्ट के पास जो साइनबोर्ड लगा है उसके लिए महीना कितना लगता है? प्रतिमाह दो लाख रुपये। हाँ, दो लाख। हमने लेदर फ्लाई कंपनी को वह जगह दी है। केबिन शू की पैटर्न जैसा होगा। उसके अंदर प्लास्टिक के एक जोड़े जुते होंगे। इसलिए कंपनी हमें हर महीने दो लाख रुपये देगी। देखिए दोनों प्रस्ताव कितने अच्छे है। लेकिन यह आदमी किसी भी बात के लिए राजी नहीं है। वह कह रहा है कि अपने टिन के केबिन ऐसे ही रहेगा। आप एक बार कल्पना करें बटरफ्लाई मॉल के नए गेट के सामने ऐसे एक टिन के केबिन! नहीं, नहीं, यह संभव नहीं है।’

टुटुल के पिता जी ने कहा, ‘इन दो प्रस्तावों में से पहला प्रस्ताव ठीक है। मैं जाकर उस आदमी के साथ बातें करता हूँ।’

‘ठीक है। लेकिन आप उस आदमी को कैसे जानने लगे हैं? क्या आपके सीएनजीओ से जुड़े हुए हैं?’

टुटुल के पिता जी मुस्कुराए। उसने सोचा, उनकी सोच गलत नहीं है। आजकल जब कोई किसी के बारे में सवाल पूछता है तो उसे स्वयंसेवी समझा जाता है। यह देश अभी दो भागों में बँट गया है। सरकार और स्वयंसेवक। लेकिन नागरिक नाम से एक वर्ग भी होना चाहिए। स्थिति है, लेकिन उसका विस्तार नहीं है। सिराज के पिता जी ने कहा, ‘आप नहीं समझेंगे, यह केबिन मेरे लिए बहुत कुछ है। इसे बुलडोजर से धक्का देते हुए मैं देख नहीं सकूँगा।’

टुटुल के पिता जी ने सोचा, ये सिर्फ एक भावनाएँ हैं। इसका मूल्य इस जमाने में कुछ भी नहीं है। इस शहर में प्रति दिन सैकड़ों ऐसे निर्माण हो रहे हैं और ध्वंस भी हो रहे हैं। वे वापस आ रहे थे।

टुटुल ने पूछा, ‘चाचा जी, आपको दिक्कत कहाँ है?’ सिराज के पिता जी कुछ भी नहीं कहना चाहते थे। सिराज के मजबूर कराने पर सामने आकर कहा, ‘यह केबिन मेरी माँ ने पिता जी के लिए अपनी कमाई से बना दिया था।’

टुटुल के पिता जी सोच रहे थे। उनके पीछे टुटुल की माँ खड़ी थीं। बटरफ्लाई मॉल के जनरल मैनेजर एक दयालु आदमी हैं। उन्होंने कहा, ‘सिराज अठारह साल का नहीं है। फिर भी हम उसे एक मौका देंगे। हमने एक नया किड्स कॉर्नर खोला है। हमारे ग्राहक बच्चों को वहीं छोड़ कर खरीदारी करने जाते हैं। यह क्या है कि, उन बच्चों का ख्याल रखना हमारा फर्ज बनता है, क्योंकि ग्राहक हमारे जिम्में छोड़कर खरीददारी करने जाते हैं। सिराज अब उस विभाग में काम करेगा।’ उस घटना से एक महीने के बाद की घटना है। टुटुल उसके बाद बटरफ्लाई मॉल के अंदर गया नहीं है। एक दिन वह सपने में सिराज को देखा–सिराज पुराने मैदान में बरगद के पेड़ के नीचे बैठा है। बीच-बीच में घास के ऊपर मँडराती तितलियों को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ता है और निराश होकर फिर वापस आ जाता है, क्योंकि तितलियाँ नीले आकाश की ओर उड़ी जा रही थी।

टुटुल की माँ कह रही थीं, ‘उस समय हम इसे देसी बाजार कहते थे, लेकिन उस देसी बाजार में क्या नहीं मिलता था! ओल, कूच, करमचा, शाक, झींगा, सुखी-मछली से लेकर ना जाने क्या-क्या। इस बटरफ्लाई मॉल के अंदर की गंध हमें एक अपरिचित-सा लगता है। देसी गंध की तरह बिल्कुल नहीं है।

टुटुल के पिता जी कह रहे थे, ‘सबसे बड़ी बात यह है कि आज हमारा खान-पान, पहनावा और रहन-सहन की शैली दूसरों के नियंत्रण में है। व्यक्ति स्वतंत्रता कहकर और कुछ भी नहीं बचा है!’

टुटुल को ये सारी बातें समझ में नहीं आती है। वह अपने सपनों के बारे में सोच रहा था। यह बात सोचते-सोचते वह अनमना हो रहा था। उसे इस हालत में देखकर उसकी माँ ने पूछा, ‘तुम्हें क्या हो गया? क्या परीक्षा अच्छी नहीं रही?’

टुटुल ने उत्तर दिया, ‘ऐसा कुछ भी नहीं है।’

हैदराबाद लौटने के दिन उसे सीधे स्टेशन जाना था। वह रास्ता बटरफ्लाई मॉल के विपरीत दिशा में है। लेकिन टुटुल ने कहा, ‘मैं एक बार सिराज से मिलना चाहता हूँ।’

किड्स कॉर्नर में एक प्लास्टिक का गार्डन बनाया गया था। बीच-बीच में एक बोनसाई वाली बरगद का पेड़ है। इसके नीचे प्लास्टिक के पत्थर और प्लास्टिक की झाड़ियाँ हैं। उन चट्टानों, घास और झाड़ियों के ऊपर उड़ रही थीं प्लास्टिक की तितलियाँ। दूर से एक पंखे के सहारे से उस तितलियों की उड़ान को नियंत्रित किया जा रहा था। उन तितलियों को देखकर छोटे-छोटे बच्चे हँसते हुए लुढ़क से जाते थे।

सिराज लाल रंग का एक टी-शर्ट पहना हुआ था।। उस टी-शर्ट के बाईं ओर एक पीले रंग की तितली की तस्वीर थी जो उसका कंपनी का ट्रेडमार्क है। वह चेहरे पर खरगोश का मुखौटा पहने बच्चों को हँसाने का काम कर रहा था।

टुटुल ने छत की ओर देखा। प्लास्टिक के गार्डन में कंक्रीट का आसमान नीला नहीं दिख रहा था, वह गुलाबी दिख रहा था। उसे देखकर सिराज ने फौरन अपना मुखौटा थोड़ा-सा हटाकर तुरंत फिर से ठीक कर लिया। टुटुल को लगा सिराज की आँखों के कोरों में आँसुओं के दो बूँदें अटके हुए हैं।

रास्ते में टुटुल को उसके पिता जी ने पूछा, ‘तुम दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे न?’ लेकिन टुटुल उस समय चार साल अतीत के उस पृथ्वी पर विचरण कर रहा था–जहाँ आकाश का रंग गुलाबी नहीं, नीला था।

(अनुवाद : अजित पात्र)


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