पक्षपात

पक्षपात

अभी फोन पर बात ही हो रही थी कि बातों के बीच में टू टू टू की आवाज आने लगी। ऐसा ही होता है पुस्तक प्रकाशन के बाद के कुछ दिनों तक। एक की बात खत्म नहीं हुई कि दूसरे की कॉल मानो मैं लेखिका नहीं किसी कॉल सेंटर की इंप्लॉय हूँ। लेकिन सच तो यह है कि ऐसी कॉल लेखक तथा लेखिकाओं की लेखनी की खुराक होती हैं। प्रशंसा की स्याही की बदौलत ही तो लेखनी को रफ्तार मिलती है वर्ना…मैं पहले कॉल को काटकर मिस्ड काल पर री-कॉल करने जा ही रही थी कि मोबाइल की घंटी फिर से बज उठी। नाम मैंने देख लिया था इसीलिए बिना कोई औपचारिकता निभाये बोली, ‘हाँ बोलो बंटी…’

आपकी किताब मैं पूरा पढ़ गया दीदी बंटी बोला।

मैंने कहा…‘इतनी जल्दी?’

‘हाँ, कहानियाँ तो मैं पढ़ता ही हूँ।’

मैंने मन ही मन कहा थैंक्स गॉड कि इसे कहानियाँ पसंद आईं और पढ़ गया वर्ना कविता संग्रह पढ़ने के बाद तो माँ से बोला था कि दीदी क्या-क्या लिखी हैं मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया। जबकि मैं कोशिश करती हूँ कि सरल से सरलतम् भाषा का प्रयोग करूँ। तब बंटी ने मुझसे कहा था ‘दीदी अब आप कहानी की पुस्तक प्रकाशित करवाइये।’ उसी के कहने पर ही मैंने कहानियों की पुस्तक प्रकाशित करवाई। इसलिए मेरा खुश होना तो स्वाभाविक ही था। अब मैं उसका रिव्यू जानना चाहती थी। रिव्यू क्या, सच तो यह है कि उसके मुँह से अपनी पुस्तक की प्रशंसा सुनना चाहती थी जो कि प्रत्येक लेखक-लेखिका चाहते हैं।

तभी वो बोला ‘किताब की कहानियाँ तो बहुत अच्छी हैं और आपकी लेखन शैली भी बहुत अच्छी है लेकिन…’

‘लेकिन क्या बोलो न बंटी’ मैं अंदर से थोड़ा मायूस तो हो ही गई लेकिन उससे बोली ‘साफ़-साफ़ बोलो न तभी तो मुझे समझ में आयेगा कि कैसा लिखी हूँ और आगे क्या करना होगा।’

‘आपकी कहानियाँ पक्षपाती लगीं।’ बंटी बोला। मैंने कहा ‘मतलब’?

‘मतलब कि आपकी कहानी के पात्रों में महिलाओं की खामियाँ दिखती ही नहीं जबकि साहित्य समाज का आइना होता है तो आप निष्पक्ष होकर लिखिये।’ मैंने कहा, ‘एक तो मैं महिला हूँ इसीलिए भी महिलाओं की मनोदशा को अच्छी तरह से महसूस कर सकती हूँ और दूसरे जैसी महिलाएँ मेरे आसपास दिखती हैं उन्हीं में से पात्रों का चयन कर सकूँगी न? उस पर कैसे लिखूँ जो मैंने देखा ही नहीं है।’

बंटी बोला, ‘हम वकीलों के पास तो कोर्ट में एक से बढ़कर एक महिलाओं के द्वारा प्रताड़ित पुरुषों के केस आते हैं। कानून का दुरुपयोग करके पुरुषों को बर्बाद करके रख दे रही हैं औरतें। अभी आज ही एक धन्नासेठ को सजा होने से बचाया है मैंने।’ मैंने कहा वो कैसे?

सेठ बता रहे थे कि–उस दिन मैं दोपहर के दो बजे के करीब घर पहुँचा तो देखा पड़ोस की एक औरत अपनी करीब दस ग्यारह साल की बेटी को लेकर आई थी। मेरे आते ही वो मेरी पत्नी नंदिनी से हाथ जोड़कर कुछ कह कर चली गई। उसके जाने के बाद मेरी पत्नी बहुत परेशान लग रही थी। जब मैंने पूछा तो बताई कि आप आज ही इस ड्राइवर को काम से हटा दीजिये।

मैंने कहा आखिर क्यों?

नंदिनी–‘पड़ोस वाली जो अपनी बेटी को लेकर आई थी वह बोल रही थी कि चूँकि यह आपका ड्राइवर है इसलिए सोचा पहले आपसे बोल दूँ वर्ना मेरे पति तो सीधे पुलिस में कंप्लेन करने जा रहे थे।’

‘क्यों?’–सेठ ने झल्लाते हुए कहा।

नंदिनी–‘क्योंकि ड्राइवर ने उसकी बेटी को बैड टच किया था।’

सेठ–‘क्या कह रही हो?’

नंदिनी–‘सच कह रही हूँ इतनी छोटी बच्ची झूठ थोड़े बोलेगी मुझसे वो एक-एक बात बताई।’

सेठ–‘यह तो बहुत गलत बात है अभी बताता हूँ उसे?’ कहते-कहते सेठ नीचे उतरे और ड्राइवर को लात-जूतों से पीटने लगे और बोले अब तुम्हें पुलिस के हवाले करना ही ठीक रहेगा।

ड्राइवर–‘क्यों पीट रहे हैं सर…मैंने कुछ नहीं किया है।’

सेठ–‘अच्छा कुछ नहीं किया…चल थाना…पुलिस के डंडे तुमसे सच उगलवा लेंगे।’

ड्राइवर–‘मुझे माफ़ कर दीजिए सर, मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं, अगर मैं जेल चला गया तो भूखे मर जायेंगे।’

ड्राइवर की इस बात को सुनकर मुझे दया आ गई तो मैंने उसे डरा-धमकाकर छोड़ तो दिया लेकिन ड्राइवर को नौकरी से निकाल दिया। ड्राइवर मुझसे खूब मिन्नतें करता रहा लेकिन मैंने उसकी एक न सुनी। और दूसरा ड्राइवर रख लिया।

बात आई-गई हो गई लेकिन उसके बाद से मैं नौकर-चाकर, ड्राइवर तथा व्यापारिक कर्मचारियों पर ध्यान देने लगा। सब ठीक चल रहा था तभी मेरी पत्नी का सीढ़ियों से फिसल जाने की वजह से पैर की हड्डी टूट गई जिसमें मुझे काफी परेशानी झेलनी पड़ी। लेकिन तभी घर की बाई एक औरत को लेकर आई और बोली कि ये काम ढूँढ़ रही है। तब मुझे लगा कि भगवान समस्याएँ देता है तो उनसे निकलने का रास्ता भी देता है।

औरत साफ सुथरे कपड़े पहनी थी और देखने में काफी खूबसूरत और आकर्षक थी। उसकी उम्र लगभग तीस-बत्तीस वर्ष होगी और देखने से अच्छे घर की लग रही थी। उसे देखकर कहीं से भी नहीं लग रहा था कि वह काम करने वाली बाई है। मैंने अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से उसका मुआयना किया और अंततः उसका नाम-पता पूछकर उसे काम पर रख लिया।

औरत का नाम मालती था और उसने बताया कि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है। बहुत दिनों तक मायके में रही लेकिन मायके में माँ के मरने के बाद उसके भाई-भौजाई उसे प्रताड़ित करने लगे तो उसने घर का काम करके अपना गुजारा करने का निर्णय लिया। मैंने अपने गैरेज के ऊपर एक बेडरूम सेट बना रखा था इसलिए उसे रखने में भी कोई परेशानी नहीं हुई।

मालती ने आते ही एक कुशल गृहणी की तरह पूरा घर सँभाल लिया। साथ ही नंदिनी की सेवा भी बहुत अच्छी तरह से करने लगी। कुछ ही दिनों में मालती हमारी प्रिय तो बन ही गई साथ ही हमारा विश्वास भी जीत लिया।

वह हमारा एक-एक सामान जगह पर रखती। हमारे खाने-पीने का पूरा खयाल रखती, खास तौर से मेरा। इतना कि जब तक मैं आ नहीं जाता वह जागी रहती। और मेरे खाने-पीने के बाद ही खाती।

उसका रूप सौंदर्य मुझे अपनी ओर आकृष्ट करता लेकिन मैं अपने-आप को संयमित कर लेता क्योंकि मेरा दांपत्य बहुत सुखी व संतुलित था। इधर मालती कुछ ज्यादा ही बन-ठनकर रहने लगी। न चाहते हुए भी मेरी दृष्टि उसके अंग-प्रत्यंग का निरीक्षण करती रही। कभी-कभी खाना परोसते समय उसका आँचल ढुलक जाता और मेरी दृष्टि उसके यौवन को ललचाई सी देखती फिर भी मैं स्वयं को संयमित करने में कामयाब हो जाता।

मगर एक दिन मैंने पार्टी में कुछ ज्यादा ही पी ली। रात के करीब बारह बज रहे थे। नंदिनी सो चुकी थी। घर आया तो हमेशा की ही तरह दरवाजा मालती ने ही खोला। मेरे पैर लड़खड़ा रहे थे। मालती ने मुझे अपने कंधे का सहारा देकर मुझे मेरे कमरे तक पहुँचाया। मुझे सहारा देते-देते मालती खुद बेसुध हो गई थी और उसका आँचल कंधे से ढुलक कर जमीन पर पसर गया था। मुझे उसका स्पर्श मदहोश किये जा रहा था। वह मुझे बिस्तर पर बैठाकर मेरे जूते खोल रही थी और मैं उसे एकटक देखे जा रहा रहा था। मन हुआ उसे सीने से लगा लूँ लेकिन संयमित रहा। लेकिन जब जूते उतारने के बाद मालती मेरा सर सहलाने लगी तो मेरी बेचैनी बढ़ने लगी। मेरा पुरुषत्व जाग गया और मैं अपना होश खो बैठा। मैंने मालती को कसकर अपनी बाँहों में भींच लिया। मालती कसमसाई जरूर लेकिन उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया। शायद वह भी इसी सुहानी रात की प्रतीक्षा में थी। साँसें तेज चल रही थीं। हम एक हो गये। हम दोनों को तृप्ति का आभास हुआ।

सीधी-सादी नंदिनी हमारे इस गहराते संबंध से बेखबर थी।

एक दिन करवा चौथ के लिए मैं नंदिनी के लिए साड़ियाँ ले रहा था तो एक साड़ी पर नज़र पड़ी जिसे मैं कल्पना में ही मालती को पहना कर उसके सौंदर्य पर मुग्ध हुए जा रहा था। सेल्समैन मेरे मनोभावों को समझ गया और उस साड़ी को भी पैक कर दिया। साड़ियों के साथ मैंने चूड़ियाँ तथा सिंदूर बिंदी भी खरीदी। मैं घर आया तो दरवाजा खुला हुआ था। मेरी नज़रें मालती को ढूँढ़ रही थी लेकिन वह कहीं नहीं दिखाई दी। मैंने उसे आवाज़ भी लगाई तो भी नहीं आई। फिर सोचा अपने रूम में होगी इसलिए मैं उसके रूम में गया। उसका रूम खुला हुआ था। मैं जब उसे साड़ियों का पैकेट थमाया तो वह मुझसे लिपट गई। मैं थोड़ा सकपकाया लेकिन वह उस दिन कुछ अलग ही रूप में थी। मैंने दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और फिर एक दूसरे में पूरी तरह से समा गये।

उस दिन मैं कुछ भयभीत था। मैं जल्दी-जल्दी बाहर निकल गया और अपने रूम में भागा आया। जब आया तो देखा कि आलमारी खुली हुई है। फिर मैंने लॉकर देखा तो लॉकर खाली मिला। मेरा माथा ठनका। मैं दौड़ कर नंदिनी के पास गया तो देखा नंदिनी घोड़े बेचकर सो रही थी। मेरे आवाज़ लगाने पर भी नहीं उठी। मैं फिर मालती के पास गया उससे पूछने लेकिन देखा कि उसकी भी आलमारी खुली हुई है। मैं इधर-उधर फोन घूमा ही रहा था कि गेट पर पुलिस की गाड़ी आ गई और मुझे रेप केस में अरेस्ट करके ले गई। चार महीने जेल में सड़ने के बाद किसी ने मुझे आपके बारे में बताया तो मैं आपके पास आया हूँ। मुझे उबार दीजिये वकील साहब जितनी फीस लेना है ले लीजिये।

मैं बंटी की बातें सुनती जा रही थी फिर मैंने पूछा…‘अच्छा तो बचाया कैसे सेठ को?’

बंटी–‘मैंने पूछा कितना खर्च कर सकते हैं।’

सेठ–‘जो कुछ भी ले लीजिये लेकिन मुझे बचा लीजिये।’

बंटी–‘मैंने कहा ठीक है दस लाख दे सकते हैं?’ मेरे इतना कहने पर सेठ मुझे विस्मय से देखने लगा तो मैं उसका आशय समझ गया और बोला इसके अलावा मेरी फीस अलग से।

सेठ–‘दस लाख किसके लिए?’

बंटी–‘मालती के लिए। क्योंकि अब समझौता के अलावा आपके पास कोई रास्ता नहीं है। मैंने एक आदमी को लगा दिया है। मालती पैसे लेकर केस वापस ले लेगी।’ मैंने पूछा ‘तो क्या समझौता हो गया?’

बंटी–‘हाँ, पैसे लेते समय सेठ का वो ड्राइवर भी आया था जिसको सेठ नौकरी से निकाल दिया था। मालती उस ड्राइवर की बीवी थी।’

‘क्या…इनसान इतना गिरा हुआ हो सकता है?’ मेरे मुँह से अचानक निकला।

बंटी–‘अभी दुनिया देखी कहाँ हैं आप…हमारे कचहरी में तो एक से बढ़कर एक क्राइम के केसेज आते रहते हैं।’

मैंने कहा–‘वो तो ठीक है लेकिन इसमें भी तो आलाकमान पुरुष (ड्राइवर) ही है न? औरत (मालती) तो मात्र उसके हाथ की कठपुतली है। पति ने जैसे नचाया वैसे नाची।’

बंटी–‘आप फिर पक्षपात कर रही हैं।’


Image: Mithila Painting. Original artwork
Image Courtesy: LOKATMA Folk Art Boutique
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किरण सिंह द्वारा भी