बचपन की बारिश
- 9 January, 2015
शेयर करे close
शेयर करे close
शेयर करे close
- 9 January, 2015
बचपन की बारिश
स्मृतियों में बचपन की बारिश का दखल
अब भी बचा बसा है इतना सघन बरजोर
कि भीग जाता है जब तब
उसकी नर्म गुदगुदी से सारा तन मन
हमारे नंग धड़ंग बचपन में
बारिश का भीगा मौसम
गाँव भर के काम उमरिया
मेरे हमउमरिया बच्चों के लिए
बेहिसाब मस्ती की सौगात बन आता था।
उन दिनों टाट मिट्टर और फूस से
बने घर थे अमूमन सबके
जिनके फूस के या खपरैल गहरे तिरछे ढालों वाले
छप्पर की ओरियानी से फिसलकर
बारिश की मोटी जलधार
जो बहती थी धड़ घड़
उसके नीचे आ उछलकूद आपादमस्तक नहाना बच्चों का
मौजों के नभ को छू लेना
बन जाता था जैसे
छुटपन की इस जैसी
किसी गंवई मस्ती पर
टोकटाक या पहरा भी नहीं
होता था कोई
ऐसा निर्बंध आवारा मेघ आस्वाद पाना
उन शहराती बच्चों को कहाँ नसीब
जिनके बचपन के प्रकृति भाव को
हिदायतों मनाहियों की बारिश ही
सोख लेती है काफी हद तक
और चंद बूंद बारिश से भी
दोस्ती नाता करने को
ललचता रह जाता है शहरी बचपन
हमारे बालपन में
हमारी गंवई मांएं भी
होती थीं फिक्रजदा जरूर
पर हम बच्चों के भीगने पर नहीं
बल्कि तब
जब कई कई दिनों तक नहीं टूटती थमती बारिश
मानो शुष्क हृदय बन
एक आतंक में तब्दील हो
गई होती हो
मेरी माँ की चिंता भी अब तक
चावल के उफनाए अधहन की तरह
संघनित प्रबलित हो आती थी
घर का छप्पर बीसियों जगह से
रिसने लगता
और सर छुपाने को रत्ती भर जगह भी
नहीं बचती घर के किसी कोने में
जर जलावन चूल्हे चौके तक की
ऐसी भीगे पटाखे सी सेहत हो जाती
कि घर भर की सुलगती
जठराग्नि को बुझाने की
इन रसोई उपस्करों की खुद की
आंच ही स्थगित हो जाती
और फाकाकशी की हमारी
आ जाती नौबत
बेलगाम आंधी पानी से बरसती
आफत से त्राण पाने को
किसी देवी देवता की गुहार लगाती माँ-
अरर मरर के झोपरा…
और भी न जाने क्या क्या
अबूझ अस्फुट इसी संगति में
लगातार बोलती बुदबुदाती जाती
टोटका जैसा भी कुछ कुछ
इस मौके पर करती जाती माँ
हम सहज बुद्धि बच्चे
आशा कौतुक और विस्मय संचरित हो खूब
माँ के इन संकटमोचक उपचारों उपागमों के
बल एवं फलाफल का
आकुल इंतजार करते रहते
बेशक बारिश से अब भी है सबका
पर बचपन की बारिश के हर रुख से
केवल भीजता था उमगता अल्हड़ तन
अबके होती बारिश की बदचाली से
गहरे व्यथाहत होता है वयस्क मन।
Image: After the rain
Image Source: WikiArt
Artist: Aleksey Savrasov
Image in Public Domain