स्वयं संवाद

स्वयं संवाद

तू अकेली है तो क्या…
तू ज़मीन बन/तू आसमान बन
तू शिखर बन/तू हवा बन बह
नदी के किनारों सी रह
सितारों सी झिलमिला
दीप बन, शिखा बन
आलोक में सूरज/पृथ्वी का धीरज
समुद्र का विस्तार
संसार अपार/तू दिशा हो
दिशाओं का द्वार बन
तू अकेली नहीं
तू जीवन का सार बन
तेरा जीवन तलवार की धार पर है
तू पत्थर बन
झरते हैं झरने/झरने दे
पल-पल आहत होने को
समय का आँवा समझ चलने दे
जिनको चलने हैं कुंठित हो दाँव
अड़िग रख अपने पाँव
तू है धूप, तू है छाँव/तू है अकेली
तो हर अणु अकेला है
बह जाने दे आँसू ख़ुशी या व्यथा के
हँस कि वीरानों में झंकार हो
रेत मिले, अंगार मिले
जीत मिले, हार मिले
जलता है तो जलने दे अंतर
चरैवेति चरैवेति तेरा मंतर
यह याद रहे
स्वयं से ही है तेरा संवाद
यह याद रहे।


Image: Interior
Image Source: WikiArt
Artist: Elin Danielson Gambogi
Image in Public Domain