आखिर याद ही क्यों आते हो

आखिर याद ही क्यों आते हो

लब खामोश रहते हैं
और आँसू पलकों पर अटक जाते हैं
अहसासों के बवंडर भी
अब राख के सहरा में भटक जाते हैं
जाने वाले तुम…
आखिर याद ही क्यों आते हो!

उठता है तूफान समंदर में
दम तोड़ गई हैं मौजें भी किनारों पर
स्याह रात की हरेक तनहाई
जागती है अब शबनम के सितारों पर
जाने वाले तुम…
आखिर याद ही क्यों आते हो!

कैसे तुम्हें याद दिलाऊँ
कि तुम तोड़ गई अपना वादा
कैसे उतार दूँ तन से
तेरी यादों से बुनता हूँ रोज ये लबादा
जाने वाले तुम…
आखिर याद ही क्यों आते हो!


Image: Artist K. Korovin on the river bank
Image Source: WikiArt
Artist: Valentin Serov
Image in Public Domain