अनुभूतियाँ
- 1 May, 1964
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- 1 May, 1964
अनुभूतियाँ
(एक)
हम साधकों का वर्ग, बेसहारों का!
अल्पमत में, किस्मत के मारों का!
चाँद बेचारा दाग़दार क्यों न दिखे
जबकि गगन में बहुमत है सितारों का!!!
(दो)
जहन्नुम को ख़ौफ क्यों हो क़यामत का, क़हर का!
किनारों को डर क्यों हो धारा का, लहर का!
क्यों स्वर्ग में जाए कोई अमृत को खोजने
धरती पर बहुत सस्ता हो जब जाम ज़हर का???
(तीन)
पुण्य का पग पाप में जब जड़ गया
शाप का सर शर्म से खुद गड़ गया
इस कदर अनुभूतियाँ गाढ़ी हुईं
ज़िंदगी का स्वाद फीका पड़ गया!
(चार)
क्यों यकीं हो धड़कनों में, श्वास में?
क्यों जिएँ हम मृगमरीची आस में?
आचरण पर इस तरह पानी फिरा
लग गई है आग अब विश्वास में!!!
(पाँच)
प्यार एक मचलता हुआ बालक है, उसे बाहिर न कर!
मुस्कान एक नादान लड़की है, उसे माहिर न कर!
अगर मान सकता है तो मेरी ये बातें मान–
“हार पर पर्दा न डाल, जीत को जाहिर न कर!!!”
Image: Solidity of Fog
Image Source: WikiArt
Artist: Luigi Russolo
Image in Public Domain