बादल और वियोग
- 1 October, 1951
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- 1 October, 1951
बादल और वियोग
बादल घिरे आकाश में,
तुम हो न मेरे पास में;
मेरे लिए दो-दो तरफ बरसात के सामान हैं।
मैं मानता हूँ, वेदना ही
साधना की माप है।
हूँ जानता, कुंदन बनाता
जिंदगी को ताप है।
लेकिन सदा से है अमा के बाद आती पूर्णिमा;
मेरा चमन पतझार क्या, मधुमास में वीरान है!
मैं हूँ अकेला, है अकेली
नाव मेरी धार में।
मेरे लिए कोई नहीं
इस पार या उस पार में।
मन कैद मेरा आह में, तन है लहर की बाँह में,
मेरे लिए घर और बाहर एक-सा तूफान है।
तुम तो गए थे छोड़ मुझको
दर्द के ही आसरे।
पर जा रहे वे भी पिघलकर
आँसुओं के साथ रे।
साथी मिले दो ही मुझे प्रियतम, निशानी प्यार की–
मेरे लिए अब बन रहे दोनों मगर मेहमान हैं!
Image: Marketplace in France, after a Rainstorm
Image Source: WikiArt
Artist: Frits Thaulow
Image in Public Domain