बादल के टुकड़े
- 1 October, 1951
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- 1 October, 1951
बादल के टुकड़े
रोमिल भेड़ों-से बादल के टुकड़े!
कुछ उजले, कुछ काले।
लंबे, नाटे।
बढ़ते जाते हैं दल के दल
भेड़ों की ही गति से,
चुलबुल-चुलबुल,
एक साथ ही।
अंबर की शून्यता भग्न करते हैं।
नभ की नीली खेती को चरते हैं।
दूर क्षितिज के पार खड़ा जो है गरेड़िया
उसके पास छड़ी है
जिसके इंगित पर बढ़ते हैं
रोमिल भेड़ों-से बादल के टुकड़े।
फाहों-से हल्के बादल के टुकड़े।
कोई घुनिया घुनक रहा है
क्षितिज-ताँत की धुनकी।
मेघ रुई का घनीभूत अस्तित्व फैलता जाता।
बामन-सा विराट यह होता जाता।
लगता जैसे बिना न नापे
नभ का कोई कोना
छोड़ेगा यह शेष।
बित्ता भर भी धरती या पाताल न यह छोड़ेगा।
नीली स्मृति पर विस्मृति-अवगुंठन,
फाहों-से हल्के बादल के टुकड़े।
Image: Clouds (also known as Rain Clouds over Oregon Desert)
Image Source: WikiArt
Artist: Childe Hassam
Image in Public Domain