बारहखड़ी

बारहखड़ी

धूल से धूल कैसे झड़े?
धूल से धूल कैसे अड़े?
‘धूल थी आरंभ में
और, धूल ही होगी अंत में’
‘जय हो गुरुदेव! मगर
बीच में भी तो कुछ होगा।’
बीच की भली चलाई
बीच में है बुलबुला
जय गुरु का गुलगुला
बुलबुले में सात रंग
देख भए सभी दंग
मैं मरूँगा दुखी।
बोलो चूरे को कहाँ धरूँ?
गोबर में सान दूँ
फिर भी नहीं जला तो?
तुम्हारे पुण्य की तरह
मेरा पाप भीन
हीं फला तो?
चूरे का क्या करेगा
घूरे का क्या करेगा?
तेरी खोपड़ी को रौंदती
बाँग देती गुजर गई
एक पूरी, धकापेल
तू भी क्यों नहीं चढ़ गया
एक नक़द बारहखड़ी
तू भी क्यों नहीं पढ़ गया?
‘मन पछितैहें अवसर बीते’


Image: A Ceifa (Lumiar)
Image Source: WikiArt
Artist: António de Carvalho da Silva Porto
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