बिनतान द्वीप

बिनतान द्वीप

मैं जहाँ होता हूँ
पता नहीं चलता
वहाँ कोई और है या नहीं

जो मुझमें हैं
गुमसुम हैं
हो सकता है
मैं भी कहीं होऊँ
निस्तब्ध निर्वाक
यह होने न होने का संवाद
चलता रहता मेरे भीतर
अगर द्वीप का यह एकांत
न करने लगता
मेरे अंदर को स्नेह-सनात
इस एकांत की खोज में ही तो
मैं यहाँ आया था
भीड़ से भागकर

यह द्वीप मुझे भेंट में देता है
शंख सीपियाँ और रंगबिरंगी मछलियाँ
अपना हास और उल्लास
पर मेरे पास इसे देने को क्या है
स्पर्श की कोमलता
दृष्टि की निर्मलता
संवेदन स्नेह करुणा
सबको तो मैं लुटा आया हूँ
अपने बाजार में

एक निःस्व किसको क्या देगा
शून्य और शून्य पास रहकर भी
शून्य ही रहते हैं
किंतु यहाँ
इस शून्य में भी चलते रहता है
पूर्ण का उत्सव अविराम

यह स्नेह स्पर्श
यह उर्मिल स्पंदन
यह पुलक भर कंपन
यह क्षितिजस्पर्शी ज्योति-विस्तार
यह आकाशीय नीलिमा
यह फेनोज्ज्वल दक्षिणात्य द्युति

सबने मिलकर क्या रच दिया है
दक्षिण चीन सागर के
इस बिनतान द्वीप पर
कि मेरा द्विधाग्रस्त उत्तप्त मानस
अनजाने ही हो रहा निष्ताप!


Image: Underwater Vision
Image Source: WikiArt
Artist: Odilon Redon
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