चार चिंताएँ
- 1 February, 1952
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- 1 February, 1952
चार चिंताएँ
जो दिल ही समुंदर लहर भावना हो
कहो चाँद मेरे! रुकें ज्वार कैसे?
जो तैराक को ही हो तिनका बनाए
फिर ऐसी लहर को धरे धार कैसे?
जिसे नाव को हो भँवर में डुबाती
उसे तट पे लाएगी पतवार कैसे?
दिमागों के सागर किए पार कितने
मगर दिल की सरिता करूँ पार कैसे
इन नजरों की सूरत हटा दे जमाना
मगर दिल की सूरत नहीं दूर होगी
मुहब्बत मेरी, वह मुहब्बत नहीं है
कि आँखों से जाते ही मजबूर होगी
खुशी का खजाना भले खाली हो ले
मुसीबत की झोली तो भरपूर होगी
बड़ी मुश्किलों से जो इज्जत मिली हो
वह बदनाम होकर ही मशहूर होगी।
¨¨¨
किसी से बात करता हूँ तो खुद को भूल जाता हूँ
उसी को याद करता हूँ तो सब कुछ भूल जाता हूँ
कोई जब दूर जाता है तो मैं क्यों पास आता हूँ?
मगर जब पास आता हूँ तो वह क्यों दूर जाता है।
सही है, वह नहीं आता, चला जाता जहाँ से मैं
मगर वह जिंदगी को मौत तक ही क्यों जिलाता है?
तड़पना देखकर मेरा, जमाना मुझ से कहता है,
–‘अरे बेदर्द परवाने! शमाँ को यूँ जलाता है?’
¨¨¨¨
कहूँ किससे, कैसे कि क्या हो गया है
जिसे खो के पाया, वही खो गया है
जगाया मुझे जिसने गिनगिन के तारे
न जाने कि खुद वह कहाँ सो गया है
कलेजे से धड़कन ने पूछा तड़पकर–
–‘बता, बीज बंजर में क्यों बो गया है?
सुबह के सितारे से शबनम न बोली
कि जो हँस रहा था वही रो गया है।
कहा चाँद ने हँस के शबनम से–पगली!
मेरा दाग कोई कहाँ धो गया है!’
जो तैराक को ही हो तिनका बनाए
फिर ऐसी लहर को धरे धार कैसे?
जिसे नाव को हो भँवर में डुबाती
उसे तट पे लाएगी पतवार कैसे?
दिमागों के सागर किए पार कितने
मगर दिल की सरिता करूँ पार कैसे
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इन नजरों की सूरत हटा दे जमाना
मगर दिल की सूरत नहीं दूर होगी
मुहब्बत मेरी, वह मुहब्बत नहीं है
कि आँखों से जाते ही मजबूर होगी
खुशी का खजाना भले खाली हो ले
मुसीबत की झोली तो भरपूर होगी
बड़ी मुश्किलों से जो इज्जत मिली हो
वह बदनाम होकर ही मशहूर होगी।
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किसी से बात करता हूँ तो खुद को भूल जाता हूँ
उसी को याद करता हूँ तो सब कुछ भूल जाता हूँ
कोई जब दूर जाता है तो मैं क्यों पास आता हूँ?
मगर जब पास आता हूँ तो वह क्यों दूर जाता है।
सही है, वह नहीं आता, चला जाता जहाँ से मैं
मगर वह जिंदगी को मौत तक ही क्यों जिलाता है?
तड़पना देखकर मेरा, जमाना मुझ से कहता है,
–‘अरे बेदर्द परवाने! शमाँ को यूँ जलाता है?’
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कहूँ किससे, कैसे कि क्या हो गया है
जिसे खो के पाया, वही खो गया है
जगाया मुझे जिसने गिनगिन के तारे
न जाने कि खुद वह कहाँ सो गया है
कलेजे से धड़कन ने पूछा तड़पकर–
–‘बता, बीज बंजर में क्यों बो गया है?
सुबह के सितारे से शबनम न बोली
कि जो हँस रहा था वही रो गया है।
कहा चाँद ने हँस के शबनम से–पगली!
मेरा दाग कोई कहाँ धो गया है!’
Image: The Wave
Image Source: WikiArt
Artist: Gustave Courbet
Image in Public Domain