चिट्ठियाँ

चिट्ठियाँ

अब नहीं आती चिट्ठियाँ
पिता की पुत्री के नाम
न पुत्र की पिता के
प्रेमिका की प्रेमी के नाम
न प्रिय की प्रेयसी के

अब तकिये के नीचे
न कोई छुपाकर रखता है पत्र
न सहेजता-याद करता है
अतीत के क्षण

अब रोई-रोई पतिया
नहीं लिखवाती कोई रजमतिया
परदेसी बलमा के नाम
और न बिछुड़ने के गम में
आता है बालम का खत

पहले विरहिणी और परदेसी के
पत्रों में पिरोया होता था –
अंतर्मन का हर अहसास
अक्षर-अक्षर में
रहता था ढाई आखर
स्नेहसिक्त और प्रेम पगे पत्र
जोड़ते थे मन से मन का तार
घर-परिवार से गाँव-जवार
सब के हालचाल का
होता था विस्तार
अपने प्रियजनों को
संदेश-उपदेश
चिट्ठियाँ पढ़
बच्चे सीखते थे शिष्टाचार

सदी के अंत में
कैसे पसर गई संवादहीनता
कैसे सिकुड़ गए संबंध
कैसे सूख गया संवेदना का सरोवर
क्या इक्कीसवीं सदी में
नहीं आएंगी चिट्ठियाँ ?


Original Image: Woman reading a letter Woman in Blue Reading a Letter
Image Source: WikiArt
Artist: Johannes Vermeer
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork