देह की गंध

देह की गंध

उनींदी आँखों में
अब भी कुछ सपने तारी है।
हो क्यों नहीं ऐसा
जब उम्मीद के पाँव भारी हैं
गुलों की पंखुड़ियों से
भँवरों की खिलवाड़ जारी है
अरब के हैं इत्र बेमिसाल
लेकिन उनकी देह की गंध न्यारी है


Image: Handbook of ornament a grammar of art, industrial and architectural designing in all its branches, for practical as well as theoretical use (1900) (14784460295)
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