दिल में गई उदासी सूरत पे आ रही है
- 1 January, 1952
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- 1 January, 1952
दिल में गई उदासी सूरत पे आ रही है
दिल में गई उदासी सूरत पे आ रही है
चंदा की चाँदनी से धरती नहा रही है!
पहले तो था अकेला अब आ गया है ग़म भी
बिजली चमक रही थी बदली भी छा रही है!
दिल की तड़प को जब-जब गीतों में बाँधता हूँ
कौए मखौल करते–‘कोयल भी गा रही है!’
आँखों में आ रही हैं रह रह के उनकी आँखें
लेकिन मुझी को अपनी सूरत न भा रही है!
मजबूरियाँ तुम्हारी मजबूरियाँ नहीं हैं
मिलने की बेकरारी ही दिल से जा रही है!
आबोहवा है ऐसी घुट घुट के मर रहा हूँ
यह जिंदगी ही मेरी अब मुझ को खा रही है!
Image: Riverbank in Moonlight
Image Source: WikiArt
Artist: Charles-Francois Daubigny
Image in Public Domain