गाँव की दुनिया

गाँव की दुनिया

अवधी

घास बाँस के बने घरौंदा, लगी थोंभरिया थुनियाँ,
तिनमाँ छिपैं अन्न के दाता, यहै गाँव की दुनियाँ।

धरती खोदे नाजु मिलै, औ चूहा खोदे पानी,
विरवन ते फल दूधु मिलै, सपना असि मिलै जवानी,
लकड़ी पेरे राव मिठाई, दाना पेरे तेल,
मट्टी पेरे नमक मिलै, उरुकिन ते अजर फुलेल,

हिंया जबाना चूसै आवै, यह रस चूसी पुनियाँ,
हिंया बनैं कस कोठी बंगला, यह किसान की दुनियाँ।

हिंया रूपु चिथरन माँ बाँधा, प्रान बँधे बाचा पर,
साखिन ते पलि रहा धरम, बाँधा कच्चे धागा पर
बात लाज के संगबँधी, ईस्सुरु बाँधा नस-नस पर
एक तार माँ कुटुम बँधा, भय भागि बँधी कर्मन पर,

हिंया पतिब्रत धरमु निबाहै, विधवा जुवा किसुनिया,
हिंया न काम विहार पछहिंया, हिंया गाँव की दुनियाँ।

हिंया सूख्य छपरन पर फूलैं, लौकी सेम तोरैंया,
हिंया बनन के पसु विलमावैं, कोमल नरम कलैंया,
जौन विथा सो गीतु हिंया पर, जो बोलैं सो भाषा
नीके-नीके कटै दौसु बसि, यहै राति दिन आशा,

हिंया कुटुम्ब अकेले पालै, धर्मिनि बहू विसुनियाँ,
हिंया यहे अंजन मसीन हैं, यह मंजूर की दुनियाँ।

लाठी डंडा बाँसु फटफटा, जेतुवा जूता ठेंगा,
खुरुपा हँसिया गड़सा फरुहा, यहे हिंया के तेगा,
दुनियाँ भरि के रोग हिंया पर, खर पतवार दवाई,
थोरे बरतन डीहु पुराना, यहै हिंया प्रभुताई,

हिंया साँप का दुधू मिलै औ बंदरन का गुरधनियाँ,
हिंया होय तुलसी की गीता, यह किसान की दुनियाँ।

हिंया न हलो न हाँथ मिलौवल, हाँथ छुबे निर्बाह,
स्वार्थ भरा व्यापार न धोखा, बोलि न पावै चाह,
हिंया स्वतंत्र साँप वीछी हैं, नर नारी परतंत्र,
विपति हिंया बारे की संघिनि, जहरु उतारै मंत्र,

हिंया कपट छल जालु सिखावै, चलै सुधारक मुनियाँ,
हिंया चलि रही रीति जुगन की, यह भारत की दुनियाँ।


Image Courtesy: LOKATMA Folk Art Boutique
©Lokatma

वंशीधर शुक्ल द्वारा भी