गीत मुखर हों

गीत मुखर हों

मुझमें गीत मुखर हों जैसे मन का मीत पुकारे!
सुधि अपनी जो टाँक-टाँक दे
स्वर के सीवन खोले,
शीतल कर दे ताप, अमृत
आँखों के जल में घोले;
मधुमय हो अनुभाव कि जैसे ममता हठ से हारे!
धूप-छाँह में संगी बन कर
सुरभित राह चलावे,
धार निहार थकूँ तो बढ़ कर
अपनी बाँह–बढ़ावे,
अंतर्तम के सघन क्षितिज से ज्योतिर्नयन उघारे!


Image: Ragini-Todi
Image Source: Wikimedia Commons
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