ग्रीन-रूम (दो)
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- 1 October, 2015
ग्रीन-रूम (दो)
अंदर जाने का समय हो गया
खुल गया, प्रवेश द्वार
मैं बैठ गई अपनी सीट पर
पर्दा धीरे-धीरे उठ रहा है
नाटक का सूत्रधार उपस्थित दर्शको को
नाटक की भूमिका बता रहा है –
नाटक के पात्र तैयार हो रहे होंगे
ग्रीन रूम का दरवाजा बंद है
जैसे ही शुरू होगा नाटक
खुल जाएगा एक गुप्त द्वार
जो ग्रीन रूम से सीधे
स्टेज तक आता है
दर्शकों की नजर से छिपकर,
नेपथ्य से बज रहा है
महाभारत का प्रचलित श्लोक
कर्मण्ये वाधिकारस्तु…।
खुलता है जीवन का प्रथम पृष्ठ
शुरू हो जाता है अंतहीन कर्म
निरंतर चलता है जीवन का नाटक
कर्म-फल की चिंता नहीं करना
यह संदेश ही नहीं, एक चेतावनी है
प्रत्येक कर्म का फल सुनिश्चित है
(कर्म हमेशा अच्छा करना)
चढ़ा लो चाहे जितने मुखौटे
लगा लो चाहे जितना मुर्दा-शंख
नाटक के बाद हटाना पड़ेगा मुखौटा
धोना पड़ेगा मुर्दा-शंख
आना होगा अपने सही रूप में
तभी पहचाना जाएगा तुम्हारा अस्तित्व
शुरू होगा नाटक के बाद।
नेपथ्य से बज रहा है
दूसरा श्लोक –
अइं त्वाम रक्षाम् करिष्यामि मा शुचः
जीवन के सूत्रधार का ऐसा आश्वासन
कि मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा
तुम चिंतामुक्त हो जाओ
अंतर्मन को विह्वल कर गया
एक पुकार
-समर्पण की भावना दो प्रभु!
ये पंक्तियाँ मेरे अंदर गूँजने लगीं –
न खुशी अच्छी है
न मलाल अच्छा है
ईश्वर जिस हाल में रखे
वो ही हाल अच्छा है
कुछ देर के लिए पर्दा गिर गया
फिर उठता है तो स्टेज पर
सभी पात्र होते हैं
अपनी-अपनी जगह विराजमान
दुःशासन, द्रौपदी को बालों से
घसीटता हुआ लाता है
द्रौपदी की हृदय -विदारक
चित्कार सुनकर
आ गए दर्शकों के आँखों में आँसू
द्रौपदी रक्षा के लिए पांडवों को
कातर नजरों से बुलाती है
भीष्म पितामह को उनकी सच्चाई की
दुहाई देती है
नहीं बढ़ता रक्षा का कोई हाथ
मूक-द्रष्टा हैं सभी
जुआ का खेल है ही भयावह
खेल में अपनी प्रिय वस्तु को हारकर
अक्षम हो जाता है आदमी।
पूरी सभा गर्दन झुकाए बैठी है
दुःशासन, दुर्योधन
जीत का हुंकार भर रहे हैं
सब ओर से हारी द्रौपदी
पुकारती है श्रीकृष्ण को
नेपथ्य से भजन चल रहा है-
गोविंद! राखो शरण।
कृष्ण स्टेज के
ऊपर से दिखलाए जाते हैं
द्रौपदी की साड़ी बढ़ने लगती है
साड़ी खींचते-खींचते
थक जाता है दुःशासन
कहता है – साड़ी बीच नारी है
कि नारी बीच साड़ी है
पर्दा गिर जाता है
मेरे अंदर होती है एक इच्छा उत्पन्न
ग्रीन-रूम में जाकर
सभी-पात्रों से मिलने की
ग्रीन-रूम में जाना आसान नहीं होता
नाटक का पूरा कुनबा होता है वहाँ मौजूद
नाटक की बारीकियाँ
एक-एक भेद, पात्रों का सही चेहरा
देख ले कोई तो फिर
नाटक ही समाप्त हो जाए!
जैसे-तैसे पहुँचती हूँ
ग्रीन रूम में, हतप्रभ हूँ
सभी पात्र जो थे दुश्मन
हैं यहाँ दोस्त, जीवन का
एक बड़ा रहस्य है ग्रीन रूम।
हम सभी खेल रहे हैं
जिंदगी में एक नाटक।
सूत्रधार नचा रहा है
नाच रहे हैं हम
सभी पात्र हैं मानव मात्र
-एक विशुद्ध-आत्मा।
खेल में रत भूल गए हैं
कि ग्रीन रूम से चले थे नाटक करने
लौटना है फिर ग्रीन रूम में ही
जहाँ सभी अपने हैं
पराया कोई नहीं।
Original Image: Green Eye Mask
Image Source: WikiArt
Artist: Amadeo de Souza Cardoso
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork