कितने रूप हैं तुम्हारे

कितने रूप हैं तुम्हारे

ऊपर भोलापन
दिल में कालापन
बातों में लचीलापन
होठों में कुटिल मुस्कान
सफेद पोश के अंदर
बदबूदार गंदापन
मन में मैलापन
छुपाए नहीं छुपता
तुम्हारे असलियत का बौनापन

आखिर चल क्या रहा है
कहाँ जाल बिछाने की
चल रही है साजिश
या फिर लंबा हाथ
मारने की योजना बना रहे हो
किस बहुराष्ट्रीय कंपनी के हाथों
बेचने की तैयारी है
यहाँ की धरोहर को।

जल जंगल जमीन हमारा
रक्षक हैं हम
जंगल पहाड़ों का
हमारे अंदर जंगल उजड़ने का दर्द
चीख-चीख कर बयाँ कर रही है
तुम्हारी दरिंदगी के किस्से

तुम हो कि अपने कुतर्क से
भटकाना चाहते हो
गरीब, बेबस, असहाय को
ताकि तुम लुभा सको
उसके भोलापन को

पूर्वजों से प्रकृति के पुजारी हैं हम
जंगल पहाड़ों में
बसती है हमारी आत्मा
सुकून मिलता है
जंगलों के हरापन से और
तरोताजा हो जाती है संपूर्ण प्रकृति

तुम्हारे षड्यंत्रकारी साजिशों से
दर-बदर भटकते खानाबदोश की तरह
जन्म-जन्मांतर से उलझे
मकड़जाल से परे
मुक्त होना चाहती हूँ
तुम्हारे आतंक से…।


Image : A merchant in a fur coat
Image Source : WikiArt
Artist : Boris Kustodiev
Image in Public Domain

निर्मला पुतुल द्वारा भी