यथार्थ की जमीन पर खड़ी कहानियाँ

यथार्थ की जमीन पर खड़ी कहानियाँ

साहित्य की गहरी समझ रखने वाले अशोक कुमार सिन्हा की हालिया दिनों में कहानी संग्रह प्रकाशित हुई है–‘मवाली की बेटियाँ।’ इसमें 16 कहानियाँ हैं। अशोक कुमार सिन्हा संजीदा कहानीकार हैं, उनकी कहानियों में यथार्थ है। यथार्थ की जमीन पर कहानियाँ खड़ी हैं। कहानियों में यथार्थ न हो, तो यह सच है कि वैसी कहानियाँ पाठकों के हृदय पर अपनी धाक जमा पाने में असमर्थ रहेगी। आंचलिक शब्द और मुहावरे का प्रयोग पाठकों को किताब से जोड़ती है। कहानियों में आंचलिक शब्द भी हैं और मुहावरे भी। समाज में, राजनीति में जो कुछ भी हो रहा है, उसे ही कहानीकार ने अपनी कहानी का विषय बनाया है।

‘सुंदरियों’ के चक्कर में नेताओं के कैरियर बर्बाद होते रहे हैं। उनकी राजनीति ‘मिनीमाइज’ होती रही है। बावजूद नेताजी सुंदरियों की बाँहों में झूलने से कहाँ बाज आते हैं? सत्ता की राजनीति में हमेशा सुंदरियाँ भरी रहती हैं, जो डँस लेती हैं नेताओं को। ‘एक नेताजी की आत्मकथा’ में नेताजी के गिरते मिजाज को रखने की कोशिश की गई है कि कैसे नजमा जैसी विषकन्या डँसती है मंत्री जी को कि उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ता है। भारतीय राजनीति में ‘सुंदरियों’ के चक्कर में इस्तीफा का खेल कोई नया नहीं है, जिसे कहानीकार ने अपनी कहानी का विषय बनाया है।

सच पूछिए, तो औरत के लिए मर्द का साथ बहुत जरूरी है, भले वो बड़े ओहदे पर बैठी हो। यह अलग बात है कि स्त्री ने अपना सब कुछ दिया है, पुरुष ने कभी कुछ नहीं दिया–सीता भी शंकित निगाहों से देखी गईं, पाँच पति वाली द्रौपदी भी। औरत, सेक्स के लिए नहीं, बल्कि जिंदगी के लिए बहुत जरूरी है। ठीक ही शालू ने कहा–‘कोई फर्क नहीं आएगा, सर। मुश्किलें जब सरहदें छूने लगेंगी, तो दोनों में से एक रिजाइन कर देगा। जीने के लिए एक की नौकरी बहुत है।’ सच में, पहला प्यार कहाँ कोई भूल पाता है। वक्त भले प्यार पर धूल जमा दे, पर एक-न-एक दिन ‘मिलन’ से प्यार उमड़ पड़ता है। माना, प्यार पर धूल कभी जमी न हो। ‘पहला प्यार’ के लिए ही तो शालू नौकरी तक को छोड़ने के लिए तैयार है।

बेटियाँ उड़ना चाहती हैं। वह गरीब घर में जन्म ले या फिर अमीर घर में, उसे बँधना बिल्कुल पसंद नहीं है। उसे उड़ना है आकाश में चिड़ियों की तरह। बेटियों को बस मौका चाहिए। यदि बेटियों को मौका मिल जाए, तो वह खिलखिला सकती है, हँस सकती है। हँसती हुई बेटियाँ अच्छी लगती हैं। बेटियों की चहचहाहट से घर-आँगन खिल उठता है। बेटियों की बस यही चाहत रहती है कि–हमें उतना पढ़ा दीजिए कि हम ठीक-ठीक लिख-पढ़ सकें और दुनियादारी समझ सकें। ‘मवाली की बेटियाँ’ में बेटियों का दर्द है!

‘पुनर्जन्म’ कहानी प्रेरणा है उस दिव्यांगों के लिए, जो थककर हार मान लेते हैं। ‘अन्नदाता’ में भारतीय किसान की पीड़ा झलक रही है। देश के अन्नदाता आज भूखे क्यों मर रहे हैं? समाज, सरकार और नौकरशाह संवेदनहीन क्यों बने हुए हैं? व्यवस्था पर प्रश्न करने वालों को ‘नजर’ पर क्यों चढ़ा लिया जाता है? पुलिसिया नजर भी ‘शक्की’ क्यों हो जाती है। इसका उत्तर जरूरी है? जरूरी है पुरुषार्थ, लिप्सारहित और सहयोगी के मंत्र को बताना। जरूरी है यह संदेश देना कि समेकित प्रयास से ही गाँव, घर और समाज को बेहतर बनाया जा सकता है।  ‘पहाड़ पर कंदील’ कहानी में आदिवासी समाज का जीवन दर्शन है। सच में, जंगल के लोग जमीन, जंगल और औरत की रक्षा को अपनी संस्कृति और अपना धर्म मानते हैं। अपनी आजादी इन्हें बहुत प्यारी लगती है। प्रकृति इनके लिए सब कुछ है। पेड़, पहाड़, नदी, पशु-पक्षी सब वंदनीय हैं। काश! हम भी प्रकृति से प्यार करते। कहानीकार ने संदेश छोड़ा है कि हम वैश्विक सपने देखते हैं, जबकि अकाल, अभाव के बाद भी आदिवासी समाज न तो खान-पान छोड़ा और न ही अपना पहनावा-ओढ़ावा। काश! समूची दुनिया प्रकृति की इतनी ही करीब रही होती। पाप का घड़ा एक न एक दिन जरूर फुटता है। जब घड़ा फुटता है, तब जाकर पापी को होश होता है। हालाँकि तब तक बहुत विलंब हो जाता है। निश्चित तौर पर चिकित्सक को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है, लेकिन धनार्जन के लिए चिकित्सक ‘पेशा’ करने लगे, तो उन्हें होश में लाना भी जरूरी है। ‘पापी की जगह’ तो जेल की सलाखें ही हैं।

सामाजिक यथार्थ को शब्दों में पिरोकर कहानीकार अशोक कुमार सिन्हा ने अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को निभाने की भरपूर कोशिश की है। साहित्यकार ही तो समाज को आईना दिखाते हैं। समाज को आईना दिखाने की यह कोशिश सराहनीय है!


Image : Potato Harversters
Image Source : WikiArt
Artist : Elin Danielson-Gambogi
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