बचपन का दोस्त हाय! रे तनहा पड़ा रहा

बचपन का दोस्त हाय! रे तनहा पड़ा रहा

बचपन का दोस्त हाय! रे तन्हा पड़ा रहा
डोली रवाना हो गई, झूला पड़ा रहा

दानी की आँख बोल पड़ी थी जरूर कुछ
दरवेश मुड़ के चल दिया सिक्का पड़ा रहा

आवाज उम्रभर न किसी ने लगाई और
इक नाम की तलाश में चेहरा पड़ा रहा

इसमें अजीब क्या है बताए कोई, अगर
सस्ता तुरंत बिक गया महँगा पड़ा रहा

पगली जहान छोड़ के आजाद हो गई
खटिया के एक छोर पे रस्सा पड़ा रहा

आँधी में ऐसा पल भी दिखा है हमें जहाँ
भारी हवा में उड़ गए, हल्का पड़ा रहा

‘अनमोल दस्तावेज’ उसे कह रहे हैं सब
कागज जो दोनों ओर से कोरा पड़ा रहा।


Image : The Spanish Tavern
Image Source : WikiArt
Artist : Konstantin Korovin
Image in Public Domain

के.पी. अनमोल द्वारा भी