आदमी टिकता कहाँ है बात पर

आदमी टिकता कहाँ है बात पर

आदमी टिकता कहाँ है बात पर
झट बदलता है फकत हालात पर

ठीक है, वो कह गया भाषण में जो
पर भरोसा क्या हो गिरगिट-जात पर

हो गई तब से खयालों की कमी
वार जब से है हुआ जज्बात पर

वो तो बम, पिस्टल लिए था घूमता
था गुमां हमको तो मुक्का-लात पर

सूर्य का उगना तो तय ही जानिए
इतना मत इतराइएगा रात पर

नासमझ है या है वो पागल कि जो
हँसता है हर चोट पर, आघात पर

जिंदगी शतरंज जैसी मत बना
खत्म रिश्ते कर न शह औं मात पर।


Image : Chess-Players
Image Source : WikiArt
Artist : Honore Daumier
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गरिमा सक्सेना द्वारा भी