बाखबर हम हैं

बाखबर हम हैं

बाखबर हम हैं मगर अखबार नहीं हैं
बाकलम खुद हैं मगर मुख्तार नहीं हैं

क्या कहा हमने भला इक शेर कह डाला अगर
कट गए वो और हम तलवार नहीं हैं

आप ही तो साथ थे अब आपको हम क्या कहें
जानते हैं, रास्ते बटमार नहीं हैं

डूबिएगा शौक से हम तो डुबाने से रहे
हम नदी की धार हैं मझधार नहीं हैं

आप चीजें चाहते हैं आपकी औकात है
हम कहीं तक शामिले-बाजार नहीं हैं

आज तक सूरज हमारी देहरी उतरा नहीं
हैं नहीं रौशन भले अंधियार नहीं हैं

हो गए हैं एक सच उघड़ा हुआ हम आजकल
चाहतों में हैं मगर स्वीकार नहीं हैं।


Image : Portrait of sculptor Konstanty Laszczka
Image Source : WikiArt
Artist : Józef Mehoffer
Image in Public Domain

रामकुमार कृषक द्वारा भी