बेजान जानकर नहीं गाड़ा हुआ

बेजान जानकर नहीं गाड़ा हुआ

बेजान जानकर नहीं गाड़ा हुआ हूँ मैं
बाकायदा उमीद से बोया हुआ हूँ मैं

कोई नहीं निगाह में जिस ओर देखिए
सहरा में हूँ कि शहर में अंधा हुआ हूँ मैं

माना कि आप जैसा धधकता नहीं मगर
छू कर मुझे भी देखिए तपता हुआ हूँ मैं

बिस्तर से अपने रब्त नहीं है कि पूछ लूँ
ये ओढ़ कर पड़ा हूँ कि ओढ़ा हुआ हूँ मैं

(मैं आशना हूँ टूटने वालों के दर्द से)
साबुत नहीं हूँ तोड़ के जोड़ा हुआ हूँ मैं

मालूम है उसे मैं उभरता खयाल हूँ
फिर भी वो सोचता है कि सोचा हुआ हूँ मैं।


Image : Portrait of Sergei Diaghilev
Image Source : WikiArt
Artist : Valentin Serov
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