चुभन जी रहा हूँ

चुभन जी रहा हूँ

चुभन जी रहा हूँ, जलन जी रहा हूँ
मैं रिश्तो में हर पल घुटन जी रहा हूँ

नहीं अब किसी से भी परहेज मुझको
जमाने का हर इक चलन जी रहा हूँ

थका हूँ परायों से, अपनो से, खुद से
मैं हँस-हँसके सारी थकान जी रहा हूँ

किसी फूल पर भी नहीं मेरा हक है
मैं कहने को सारा चमन जी रहा हूँ

नहीं कुछ खबर राम-वनवास की है
मैं दशरथ के जैसा वचन जी रहा हूँ।


Image : Portrait of Dmitry Mendeleyev
Image Source : WikiArt
Artist :  Ivan Kramskoy
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