लगाती हैं किसानी दाँव

लगाती हैं किसानी दाँव

लगाती हैं किसानी दाँव पर घरवार ये मौसम
सदा तेरी ही लाठी से, वो जाती हार ये मौसम

फकत अरमान के दानें वो बोते नर्म माँटी में
कभी पुरबा कभी पछुवा, गई ललकार ये मौसम

निकल कर झाँकता है बीज का नवजात सा कल्ला
उसी के साथ सौ दुश्मन लिए अवतार ये मौसम

हथेली पर टहलती खेत की हँसमुख नई खुशियाँ
मगर लेकर कोई भाग झपट्टामार ये मौसम

सहम जाती हैं साँसें ओढ़कर विश्वास की चादर
उसी विश्वास पर बढ़ती गईं रफ्तार ये मौसम।


Image : Plečka
Image Source : WikiArt
Artist : Jakub Schikaneder
Image in Public Domain