जनता का हक़ मिले कहाँ से

जनता का हक़ मिले कहाँ से

जनता का हक़ मिले कहाँ से चारों तरफ़ दलाली है
चमड़े का दरवाज़ा है और कुत्तों की रखवाली है

‘मंत्री नेता अफ़सर मुंसिफ सब जनता के सेवक हैं’
ये जुमला भी प्रजातंत्र के मुँह पर भद्दी गाली है

उसके हाथों की कठपुतली हैं सत्ता के शीर्ष-पुरुष
कौन कहे संसद में बैठा गुंडा और मवाली है

सत्ता बेलगाम है जनता गूँगी-बहरी लगती है
कोई उज़्र न करने वाला कोई नहीं सवाली है

पानी हवा ज़मी पर क़ाबिज ‘सेज़’–विश्व-बाज़ार हुआ
मेहनतकश का आटा गीला मुँह बाए कंगाली है

सच को यूँ मजबूर किया जाता है झूठ-बयानी पर
माला-फूल गले लटके हैं पीछे सटी दोनाली है

दौलत शोहरत बंगला-गाड़ी के पीछे सब भाग रहे
फ़सल जिस्म की हरी भरी है ज़हनी रक़बा ख़ाली है

सच्चाई का जुनूँ उतरते ही हम माला-माल हुए
हर सूँ यही हवा है रिश्वत हर ताले की ताली है

वो सावन के अंधे हैं उनसे मत पूछो रुत का हाल
उनकी ख़ातिर हवा रसीली चारों सू हरियाली है

पंचशील के नियमों में हम खोज रहे हैं सुख-साधन
चारों ओर महाभारत है दाँव-चढ़ी पंचाली है

पहले भी राजाओं-शाहों ने जनता का ख़ून पिया
आज ‘विप्लवी’ भेष बदलकर नोच रही ख़ुशहाली है।


Image : Misery
Image Source : WikiArt
Artist : Nikolay Bogdanov Belsky
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बी.आर. विप्लवी द्वारा भी