हाँ उभरकर आ गया गुस्सा हमारे गाँव का
- 1 April, 2022
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- 1 April, 2022
हाँ उभरकर आ गया गुस्सा हमारे गाँव का
हाँ उभरकर आ गया गुस्सा हमारे गाँव का
है खड़ा तनकर हर इक तबका हमारे गाँव का
दर्द का इक दौर सा उट्ठा सियासी रूह में
आज जब हर आदमी सनका हमारे गाँव का
हिल गया सारा प्रशासन आ गया भूकंप सा
पड़ गया प्रतिरोध अब महँगा हमारे गाँव का
सोचने वालों ने सोचा ही नहीं है आज तक
जख्म कितना हो गया गहरा हमारे गाँव का
बढ़ गईं बेचैनियाँ सोई हुई सरकार की
आँख में जब पड़ गया तिनका हमारे गाँव का
भाव मिलने तक नहीं बेचेगा वो अपनी फसल
कह रहा था आज ही सुखिया हमारे गाँव का
हो गया डीजल बहुत महँगा करें तो क्या करें
किस तरह मिट पाएगा सूखा हमारे गाँव का
खोल दी सरकार ने इक देसी दारू की दुकान
हो गया वातावरण गंदा हमारे गाँव का
आठ सालों से मुकदमा चल रहा है खेत का
पेशियों पर जा रहा लँगड़ा हमारे गाँव का
बिन दवा बेबस तड़पने के लिए मजबूर था
मर गया कल शाम को धन्ना हमारे गाँव का
बँध रहे स्कूल में अब जानवर सरपंच के
बिन पढ़े, लाचार हर बच्चा हमारे गाँव का
जोर ये जब से चुनावों का बढ़ा है दोस्तो
बढ़ गया है बेबजह झगड़ा हमारे गाँव का
नाश्ता न भी मिले इक बार तो चल जाएगा
जिंदगी जैसा बना गुटखा हमारे गाँव का
पेय जल तक है नहीं शौचालयों की क्या कहें
स्वच्छता अभियान यूँ चलता हमारे गाँव का
शांति, सुख, समृद्धि की खातिर कभी मशहूर था
नाम मिट्टी में मिला सारा हमारे गाँव का।
Image : In the Rain
Image Source : WikiArt
Artist : Józef Chełmoński
Image in Public Domain