है सूखे की साल कहा तो देशद्रोह है

है सूखे की साल कहा तो देशद्रोह है

है सूखे की साल कहा तो देशद्रोह है
हो गई महँगी दाल कहा तो देश द्रोह है

जगह, जगह पर फैली हुई अराजकता
ठीक नहीं हैं हाल कहा तो देश द्रोह है

नंगे, भूखे लोग करोड़ों फिरते हैं
कुछ हैं मालामाल कहा तो देश द्रोह है

अफसर दफ्तर में फैलाये बैठे हैं
भ्रष्टाचारी जाल कहा तो देश द्रोह है

फन फैलाये बैठे ऊँचे ओहदों पर
नेता बनकर ब्याल कहा तो देश द्रोह है

अब मजदूरों, बेरोजगार, गरीबों का
कोई नहीं खयाल कहा तो देश द्रोह है।


Image : Harvest (Harvesters)
Image Source : WikiArt
Artist : António de Carvalho da Silva Porto
Image in Public Domain