हर एक मुश्किल में तप के खुद को
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- 1 April, 2022
हर एक मुश्किल में तप के खुद को
हर एक मुश्किल में तप के खुद को, वो जैसे कुंदन बना रही है
नदी के जैसे बना के रस्ता, मुकाम अपना वो पा रही है
न माँ पिता पर है बोझ अब वो, हुआ उलट है अब इसके बिल्कुल
सहारा बन के पिता औ माँ का, वो बोझ घर का उठा रही है।
नहीं इदारा कोई भी ऐसा, जहाँ न उसने हुनर दिखाया
जमीं से लेकर वो आसमाँ तक,कमाल अपना दिखा रही है।
वो घर की देहरी में कैद दासी, थी आँसुओं से भरी जो बदरी
खड़ी सफलता की मंजिलों पे, वो शान से मुस्कुरा रही है।
सुनीता विलियम या कल्पना हो, गगन पे उसका है नाम अंकित
वो मैत्रेयी औ गार्गी का ही काम आगे बढ़ा रही है।
हवाई सेना की जंगजू हो, वो चाहे हो कोबरा कमांडो
नहीं हैं कमतर किसी से भी हम, वो दुनिया को ये बता रही है।
वजूद उसका फकत बदन तक, जो सोचते हैं गलत है कितना
मदर टेरेसा सी संत बन के वो रुह को जगमगा रही है।
न है वो अबला न है बेचारी, नये उजालों का दौर है ये
बराबरी के तमाम दर्जे वो अपनी मेहनत से पा रही है।
Image : Tyttö Rannalla
Image Source : WikiArt
Artist : Pekka Halonen
Image in Public Domain