लोगों से नहीं, माल से है प्यार हो गया

लोगों से नहीं, माल से है प्यार हो गया

लोगों से नहीं, माल से है प्यार हो गया
घर घर न रहा आज है बाज़ार हो गया

संवाद था दुनिया की हक़ीक़त के बीच जो
लथलथ लहू से आज वो अख़बार हो गया

उगता था सवेरा जो लिए गीत ख़ुशी का
हर दिल में आज दर्द की मीनार हो गया

हँसता था लोक बीच स्वस्थ बंधु-भाव जो
पीकर के हवा आज की बीमार हो गया

नदियाँ ठहर गई हैं विषैली हुई हवा
इनसान ख़ुद ही ख़ुद में गिरफ्तार हो गया

पथिकों को गुनाहों के, राह कैसे दिखाए
रहबर तो आज ख़ुद ही गुनहगार हो गया

कैसा भी अँधेरा हो, उसे चीरती हुई
रह रह के रोशनी का है दीदार हो गया।


Image : Planty Park at Night or Straw Covers on Rosebushes
Image Source : WikiArt
Artist : Stanisław Wyspiański
Image in Public Domain

रामदरश मिश्र द्वारा भी