जब मिलूँ उससे तो गमगीं दास्ताँ कोई न हो

जब मिलूँ उससे तो गमगीं दास्ताँ कोई न हो

जब मिलूँ उससे तो गमगीं दास्ताँ कोई न हो
सामने मेरे खुदा हो, दरमियाँ कोई न हो

ए खुदा अपनी नवाजिश से मुझे कर सरफराज
अपनी मंजिल आप पाऊँ, मेहरबाँ कोई न हो

साजिशें सब कुछ मिटाने की करे हैं चंद लोग
जिंदगी का दूर तक नामोनिशाँ कोई न हो

ये सियासतदान देते आए हैं अब तक फरेब
सुन के इनके झूठे वादे शादमाँ कोई न हो

मुझको आजादी मिले उड़ने की छू लूँ आसमाँ
अब तमन्ना पर मेरी बंदिश यहाँ कोई न हो

ऐ ‘किरण’ ऐसा हुनर मेरी गजल को हो अता
शे’र बामकसद हों सारे रायगाँ कोई न हो।


Image : View of L`Esperance on the Schoharie River
Image Source : WikiArt
Artist : Thomas Cole
Image in Public Domain

ममता किरण द्वारा भी