जब मोहब्बत का किसी शय पे असर हो जाए

जब मोहब्बत का किसी शय पे असर हो जाए

जब मोहब्बत का किसी शय पे असर हो जाए
एक वीरान मकाँ बोलता घर हो जाए

मैं हूँ सूरज-मुखी तू मेरा है दिलबर सूरज
तू जिधर जाए मिरा रुख भी उधर हो जाए

रंज-ओ-गम ऐश-ओ-खुशी जिस के लिए एक ही हों
उम्र उस शख्स की शाहों-सी बसर हो जाए

जो भी दुख, दर्द, मुसीबत का पिए विष हँस कर
क्यूँ न सुकरात की सूरत वो अमर हो जाए

लौट आओ जो कभी राम की सूरत तुम तो
मन का सुनसान अवध दीप नगर हो जाए

खा के पत्थर भी जो मुस्कान बिखेरे हर-सू
बाग-ए-आलम का वो फलदार शजर हो जाए

हम ने जाना है यही आ के जहाँ में ‘दरवेश’
होना चाहे जो न हरगिज वो बशर हो जाए।


Image : Self portrait with a Sunflower
Image Source : WikiArt
Artist : Anthony van Dyck
Image in Public Domain

दरवेश भारती द्वारा भी