जिंदगी की कशमकश में

जिंदगी की कशमकश में

जिंदगी की कशमकश में, कुछ सुकूँ की चाह में
छोड़ आया हूँ मैं खुद को, दूर पीछे राह में

मैं तलब के सब मराहिल से, गुजर कर आ गया
टीस यूँ तो कम नहीं थी, हसरतों की आह में

ख्वाब को मैंने हकीकत ही नहीं बनने दिया
जिंदगी सारी गँवा दी खल्क की परवाह में

आज मुद्दत बाद मैंने खुद से दो पल बात की
खुद को ही मैं भूल बैठा था तुम्हारी चाह में

जिंदगी! तुझ पर मुरस्सा, कहनी है इक दिन गजल
वक्त तो लगता है थोड़ा, शेर की इस्लाह में।


Image : Genre Scene
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Artist : Konstantin Makovsky
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अजय अज्ञात द्वारा भी