कैसी बंदिश है

कैसी बंदिश है

कैसी बंदिश है कोई भी पसे-मंजर न लिखे
बात जो सच हो उसे कोई सुखनवर न लिखे

कौम कोई हो किसी को कोई बरतर न लिखे
हाँ मगर जो भी है आला उसे कमतर न लिखे

अब कोई वहशतो-दहशत के ये मंजर न लिखे
किसी स्कूल में बम, गोली कि खंजर न लिखे

कोई भी शय हो उसे जान से बढ़कर न लिखे
अदलिया से है कोई शख्स भी ऊपर न लिखे

नाखुदा है वही जो पार लगा दे कश्ती
जो डुबो दे उसे ये मुल्क शनावर न लिखे

जो गुनहगार है इतिहास का लाजिम है उसे
शाह अकबर को तो अब राणा से बेहतर न लिखे

मौज में बहते हुए दरिया में कचरा न गिरे
जिंदगी के लिए तड़पे वो समंदर न लिखे

जिसने इद्दत से, हलाला से दिलाई है नजात
क्या लिखे ‘मोदी’ को गर संत पयंबर न लिखे

एक अरसा हुआ दफ्तर ने किया मुझको विदा
अब ‘कँवल’ को कोई सरकार का चाकर न लिखे।


Image :At the Cafe, Rouen
Image Source : WikiArt
Artist : Gustave Caillebotte
Image in Public Domain

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