कराहें तेज होती जा रही हैं

कराहें तेज होती जा रही हैं

कराहें तेज होती जा रही हैं
जहन में मौन बोती जा रही हैं

दवाखाने को दौलत की पड़ी है
हमारी साँसें खोती जा रही हैं

अभी तहजीब की खेती भी होगी
अभी बस कौमें जोती जा रही हैं

तिलस्मी ख्वाहिशें ये धीरे-धीरे
हमें खुद में समोती जा रही हैं

जमीनें कम पड़ी हैं क्या शवों को
जो नदियाँ उनको ढोती जा रही हैं

बदल दो नाम अब अच्छाइयों का
ये अपने अर्थ खोती जा रही हैं

बुआई ख्वाब के खेतों में कर लो
जमीनें सख्त होती जा रही हैं।


Image : Gipsy Tent
Image Source : WikiArt
Artist : VArthur Verona
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हरेराम ‘समीप’ द्वारा भी