कोहरा है कि धुँधला
- 1 April, 2022
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https://nayidhara.in/kavya-dhara/hindi-gazal-about-kohara-hai-ki-dhundhala-by-vijay-kumar-swarnkar-nayi-dhara/
- 1 April, 2022
कोहरा है कि धुँधला
कोहरा है कि धुँधला-सा सपन ओढ़ रखा है
इस भोर ने क्या नंगे बदन ओढ़ रखा है
आ छत पे कि खींचें कोई अपने लिए कोना
आ सिर्फ सितारों ने गगन ओढ़ रखा है
कुछ खुल के दिखा क्या है तेरे नीलगगन में
कैसा ये धुँधलका मेरे मन ओढ़ रखा है
क्या बात है क्यों धूप ने मुँह ढाँप लिया और
आकाश ने बरसा हुआ घन ओढ़ रखा है
धुन क्या है तुम्हें बूझ के लगता है कुछ ऐसा
जैसे किसी नगमे ने भजन ओढ़ रखा है
लाशों की है ये भीड़ जरा गौर से देखो
जिंदा कई लोगों ने कफन ओढ़ रखा है
ऐ सर्द हवाओ! इसे चादर न समझना
फुटपाथ ने मुफलिस का बदन ओढ़ रखा है।
Image : Ile Lacruix, Rouen. Effect of Fog.
Image Source : WikiArt
Artist : Camille Pissarro
Image in Public Domain