कोठी नहीं है एक अदद झोपड़ी तो है

कोठी नहीं है एक अदद झोपड़ी तो है

कोठी नहीं है एक अदद झोपड़ी तो है,
हैं मुश्किलें हजार लबों पर हँसी तो है

लड़ती है तीरगी से कभी हारती नहीं
दीये की रोशनी ही सही रोशनी तो है

ज़ालिम निडर है और ज़माना डरा हुआ
इसकी वजह कहीं न कहीं कुछ कमी तो है

कानून की नज़र से तो बच भी गए मगर
अपना गुनाह अपनी नजर देखती तो है

हालात चाहे जो भी हों फिर भी हरेक माँ
बच्चों की बेहतरी के लिए सोचती तो है

जिसको डिगा सके न गमों की चुनौतियाँ
है जिंदगी वही तो, वही जिंदगी तो है

दौलत गई, कुटुंब गए तो भी क्या गया
‘घनश्याम’ तेरे साथ तेरी शायरी तो है।


Image : Tramps. Homeless
Image Source : WikiArt
Artist : Ilya Repin
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घनश्याम द्वारा भी