मेरे घर के पिछवाड़े से ऊपर उठ के आए चाँद
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- 1 April, 2022
मेरे घर के पिछवाड़े से ऊपर उठ के आए चाँद
मेरे घर के पिछवाड़े से ऊपर उठ के आए चाँद
माथे पर टिकुली-सा चमचम कितना आज सुहाए चाँद
कहाँ मिलेगा मेरा साथी, जाना है किस ओर मुझे
नभ में खुद ही चलकर मुझको राह दिखाता जाए चाँद
मेरा साथी तो न आया, उसका क्या फिर आएगा
जिसके आने की खुशियों में बैठा रूप सजाए चाँद
जब तक छत पर निकल न आए चाँद चौदहवीं का चुपके
तब तक मेरे मन को नभ में हँस-हँस कर बहलाए चाँद
मैंने तो इससे भी सुंदर मुखड़े देखे हैं साथी
फिर क्यों मुझको घूम-घूम कर अपना रूप दिखाए चाँद
हम दोनों की किस्मत ही ये जगने को हैं बनी हुईं
रात-रात भर तरह-तरह से मुझको यह समझाए चाँद
चाँद तुम्हें जब रात-रात भर जगना ही था ऐसे ही
क्यों न मेरे साथी को संदेश तुम्हीं दे आए चाँद
जितना कि तुम भी न मुझको तड़पाते हो रातों में
उतना तेरी याद दिला कर मुझको यह तड़पाए चाँद
मैंने तुमको कभी लगाया था सीने से अपने भी
जैसे गगन फिरा करता सीने से आज लगाए चाँद।
Image : Moonlit Night. Winter
Image Source : WikiArt
Artist : Konstantin Korovin
Image in Public Domain