निरंतर, यही बात, जग को बताई

निरंतर, यही बात, जग को बताई

निरंतर, यही बात, जग को बताई
कसम खा मुहब्बत की, किसने निभाई

उठो तुम अभी, खुद का शव गर नहीं हो
बहुत हो चुकी, देख, अब जग हँसाई

परिश्रम, उसी का, फलीभूत होता
पसीने से जिसने भी, कीमत, चुकाई

पराभूत जीने की, तज लालसा अब
उठोगे तभी, धाम देगा, दिखाई

अगर चाह जीने की है मन तुम्हारे
कला सीख लो, पहले मरने की भाई

नहीं मोह ये भंग होगा कदाचित
मनोयोग से, चेतना जो, जगाई

चतुर्दिक अमन की लिए चाँद चाहत
पकड़ काल की देखो गर्दन, झुकाई।


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Artist : Thomas Eakins
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चाँद मुंगेरी द्वारा भी