धधकती आग पर

धधकती आग पर

धधकती आग पर पाँवों को चलना खूब आता है
हमें मुश्किल दिनों से भी निकलना खूब आता है

हमारी चुप को कमज़ोरी समझकर भूल मत करना
लहू को सूर्ख लावे में बदलना खूब आता है

चलो रौशन करो और जा के रख दो अंधी गलियों में
चिराग़ों को हवाओं में भी जलना खूब आता है

अँधेरा चीर कर आता है कितने जोश से सूरज
उसी सूरज को लेकिन रोज़ ढलना खूब आता है

बहुत दिन हो गए लेकिन नहीं भूले हैं अपना फन
हमें हर दौर का नक्शा बदलना खूब आता है।


Image : Old Winegrower in Moret
Image Source : WikiArt
Artist : Camille Pissarro
Image in Public Domain

माधव कौशिक द्वारा भी