फूलों-पत्तों ने मिल-जुल कर क्या-क्या साज सजाए हैं

फूलों-पत्तों ने मिल-जुल कर क्या-क्या साज सजाए हैं

फूलों-पत्तों ने मिल-जुल कर क्या-क्या साज सजाए हैं
ये क्या जाने इन पेड़ों ने कितने पत्थर खाए हैं

कपड़े और खिलौने साथी बच्चों जैसा माँगे हैं
उसको क्या मालूम पिता पर क्या-क्या क़र्ज़ बकाए हैं

जहाँ झुक गया सर तो समझो गर्दन कटने वाली है
समझा था भगवान जिन्हें वे सब तलवार उठाए हैं

पत्थर के घर-वाले पत्थर-दिल भी हैं मालूम न था
फूँक रहे हैं झोपड़ियाँ और खुद को खुदा बताए हैं

ठोकर देना ही जो सीखे वो गिरतों को क्या थामें
हम तो गिरकर सँभले भी और उनके नाज़ उठाए हैं

पूछ ‘विप्लवी’ क्या नीयत है पागल दुनिया वालों की
पाँव में खुद बारूद बिछा कर मरने से घबराए हैं


Original Image: Interior De Casa Rural
Image Source: WikiArt
Artist: Joan Brull
Image in Public Domain
This is a Modified version of the Original Artwork

बी.आर. विप्लवी द्वारा भी