समझ में आई सीरत उसकी

समझ में आई सीरत उसकी

समझ में आई सीरत उसकी
जब खुल गई हकीकत उसकी

कासा हाथ में ले आई है
फिर इस बार जरूरत उसकी

सूरज को जी जान से चाहा
महँगी पड़ी मुहब्बत उसकी

जुबाँ जरा सी फिसल गई क्या
कितनी हुई फजीहत उसकी

आखिर डूब गए दरिया में
थी कमजर्फ नसीहत उसकी

सर पर चढ़ कर कितना नाची
दो कौड़ी की शोहरत उसकी

फिसल रही थी काई बन कर
बार बार में नीयत उसकी।


Image : Portrait of a Man Against the Light
Image Source : WikiArt
Artist : Arthur Segal
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