इस कदर कुछ जख़्म

इस कदर कुछ जख़्म

इस कदर कुछ जख़्म फिर गहरा हुआ
जो चमन था आज इक सहरा हुआ

नींद! चादर ओढ़कर खुद सो गई
उफ्फ्! खुमारी से लदा चहरा हुआ

था मुसीबत का ख़जाना सामने
आँख चौंध कान भी बहरा हुआ

रोज मिलना था जिसे चौपाल पर
वो कबीला में दिखा ठहरा हुआ

चढ़ गए झंडा लिए उत्साह में
पर वहाँ पहले से था फहरा हुआ।


Image : Head of an Oriental man (Portrait of Mustapha)
Image Source : WikiArt
Artist : Théodore Géricault
Image in Public Domain