तेरी पहचान में

तेरी पहचान में

मित्र, कुछ स्वर्गिक-सुकोमल है तेरी पहचान में,
जो हमेशा गूँजता रहता है मेरे गान में

तीर्थ-व्रत से भी अधिक तब लाभ होता पुण्य का,
निष्कलुष हो कर हृदय जब दो किसी को दान में

जो नहीं अब तक कहा वह कह रहा हूँ बात मैं,
गीत मेरे सब कसीदे हैं तुम्हारी शान में

बहुत शंकाकुल हृदय है संकुचित संसार का,
तथ्य मेरे ढूँढ़ता है वह तेरी मुस्कान में

मृत्यु परिवर्तन वेसन का, मैं कभी मरता नहीं
गीत मैं, मधु घोलता हरदम रहूँगा कान में।


Image :A Rose Trellis (Roses at Oxfordshire)
Image Source : WikiArt
Artist :John Singer Sargent
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विजय प्रकाश द्वारा भी