उजाले बाँटने फिर चल पड़े हैं

उजाले बाँटने फिर चल पड़े हैं

उजाले बाँटने फिर चल पड़े हैं
हमारे दर पे नाबीना खड़े हैं

ये परदे रेशमी तो हैं यकीनन
मेरे सपनों के इन में चीथड़े हैं

हवाए-ताजगी ले आएँगे हम
ये वादा कर गए जो खुद सड़े हैं

कलम सर कर दिया लाखों का जिसने
पढ़ा है हमने वो अकबर बड़े हैं

न मुँह पर मास्क न दूरी जरूरी
सभाओं में सियासतदां अड़े हैं

तरक्की कर रहा है मुल्क अपना
हर एक सू मील के पत्थर गड़े हैं

मेरी महबूब है बाँहों में मेरी
‘कँवल’ नैना मेरे उन से लड़े हैं।


Image : Self portrait with spectacles
Image Source : WikiArt
Artist : Paul Gauguin
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