उम्र की राह में कुछ ऐसे भी लमहे आए

उम्र की राह में कुछ ऐसे भी लमहे आए

उम्र की राह में कुछ ऐसे भी लमहे आए
जैसे अनमोल विरासत कोई हिस्से आए

ऐसी बस्ती कि अँधेरा ही अँधेरा था वहाँ
रोशनी देने में सूरज को पसीने आए

मिट गए लोग अँधेरों को मिटाने के लिए
तब कहीं जा के ये थोड़े से उजाले आए

उम्रभर धूप में तपना ही रही मजबूरी
चाँद की ओर से यूँ तो कई न्योते आए

फिर शिकारी ने नये रंग के दाने फेंके
फिर से दानों के लिए भूखे परिंदे आए

फिर सियासत ने नये नारों से बस्ती लूटी
फिर नये रूप में बहुरूपिए छलने आए

उसके बर्ताव का अंदाज ही बदला सा मिला
थोड़ा रुतबा जो बढ़ा हाथ में पैसे आए

नींद की गोली उठाई तो माँ की याद जगी
काश वो लोरियाँ गा गा के सुलाने आए।


Image : Self-Portrait
Image Source : WikiArt
Artist : Nikolai Ge
Image in Public Domain