समझ लेते हँसी का राज़

समझ लेते हँसी का राज़

समझ लेते हँसी का राज़ तो रोना नहीं होता
चमकने वाला हर सामान तो सोना नहीं होता

फ़कत साँसें नहीं देतीं गवाही ज़िंदा रहने की
बिना ज़िंदा-ज़मीरी के कोई होना नहीं होता

यहाँ क़ीमत हर इक शय की अदा करनी ही पड़ती है
ये अच्छा है कि एहसाँ दूर तक ढोना नहीं होता

वो अपनी राहों में ख़ुद ही बिछा लेता है काँटे भी
हमें दुश्मन की ख़ातिर ख़ार भी बोना नहीं होता

हमारे खूँ-पसीने से ही फसलें लहलहाती हैं
यहाँ जादू नहीं चलता यहाँ टोना नहीं होता

परिंदों के बसेरों में न दाना है न पानी है
ज़मा करते नहीं हैं जो उन्हें खोना नहीं होता

गुनाहों को क्षमा करता न होता देवता तो फिर
शराफ़त ‘विप्लवी’ को इस क़दर ढोना नहीं होता।


Image : Man with a Turban
Image Source : WikiArt
Artist : Giovanni Bellini
Image in Public Domain

बी.आर. विप्लवी द्वारा भी