रहने को ख़ुशी आई थी

रहने को ख़ुशी आई थी

रहने को ख़ुशी आई थी मेहमान हो गई
दो दिन ही सही मुझ पे मेहरबान हो गई

भगवान तो हँसते हैं खुले खेत में, दिल में
मंदिर में बंद मूर्ति लो भगवान हो गई

इनसानियत थी भेजी गई आदमी के साथ
पर रफ्ता रफ्ता हाय वो शैतान हो गई

जिस ज़िंदगी में एक धड़कता सा दर्द था
वह ज़िंदगी बाज़ार का सामान हो गई

दुनिया में हम आते हैं तो होती है एक जाति
आकर के यहाँ हिंदू-मुसलमान हो गई।


रामदरश मिश्र द्वारा भी