मैं जब खामोश होता हूँ

मैं जब खामोश होता हूँ

मैं जब खामोश होता हूँ तो सूरत चीख उठती है
बहुत ज्यादा छिपाने से हकीकत चीख उठती है

कई सदियों तलक तो देखती रहती है चुपके से
मगर इक रोज़ इनसानों पे कुदरत चीख उठती है

उन्हें गूँगा समझने की हिमाकत और मत करना
बहुत कमज़ोर लोगों की खिलाफ़त चीख उठती है

शराफत सर झुका कर बैठ जाती है सलीके से
भरी महफिल में लोगों की जहालत चीख उठती है

ज़ुबाँ को काटने वाला न समझा है न समझेगा
किसी दिन तो रियाया की बगावत चीख उठती है।


Image : A Bust of an Old Man
Image Source : WikiArt
Artist : Rembrandt
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माधव कौशिक द्वारा भी